लेखिका : कामिनी सक्सेना
सहयोगी : जो हन्टर
मैं उस समय कॉलेज में पढ़ती थी। मेरा एक बॉय-फ़्रेंड था सुधीर, जो मेरा क्लासमेट था। मेरे और उसके बीच सम्बंध तीन महीने से था। सुधीर एक छ्ह फ़ुट का खूबसूरत लड़का था। साफ़, गोरा रंग पर पढ़ने में कोई खास नहीं था, एक औसत विद्यार्थी था।
मैं अपनी स्कूटी से कॉलेज जा रही थी, तभी सुधीर ने आवाज लगाई,"कामिनी.... एक मिनट........ !"
मैंने पलट कर देखा तो सुधीर दूर पान की दुकान पर कुछ लड़कों के साथ खड़ा था, जो पहनावे से ठीक नहीं लग रहे थे। सुधीर भागता हुआ आया
"सुनो .... आज तो मैं कॉलेज नहीं जाउंगा.... पर कल सुबह जरूर मिलना....!"
"क्यों....कल क्या है?.... और ये लड़के कौन हैं जो तुम्हारे साथ हैं....?"
"परसों मेरी बहन और मां आ रही हैं.... कल घर में कोई नहीं है.... गप्पे मारेंगे .... फिर परसों के बाद कोई चांस नहीं है....!"
"सच.... तो कल कॉलेज.... गोल....!! " मैंने अपनी स्कूटी आगे बढ़ा दी....वो वापिस अपने दोस्तों में चला गया। उसका घर यहां से पास ही था। मैं खुश हो गई, काफ़ी दिनो बाद सुधीर ने अपने घर आने को कहा था। मैं कॉलेज में भी और फिर घर पर भी अपने और सुधीर के बारे में सोचती रही। मुझे यह सोचना बड़ा अच्छा लग रहा था कि हम अकेले में क्या क्या बातें करेंगे। कहीं अकेले में वो मुझे छेड़ेगा तो नहीं.... क्या करेगा .... और मैं उसके साथ प्यार कैसे करूंगी.... सोचते हुए ही रोंग़टे खड़े हो रहे थे....।
दूसरे दिन सुधीर उसी पान वाले की दुकान के सामने मिल गया.... वही अपने कुछ अजीब से दोस्तों के साथ। मुझे देख कर वो भागता हुआ आया और मेरी स्कूटी पर बैठ गया।
"पीछे मुड़ो और सामने वाला घर मैंने किराये पर ले रखा है....!"
मैं उस घर में एक बार पहले भी आ चुकी थी। पर उस समय उसकी मां और बहन भी थी। मैंने अन्दर स्कूटी रखी इतनी देर में सुधीर ने घर का ताला खोल दिया। अब हम दोनों घर के अन्दर थे। अन्दर आते ही उसने मुझे चूतड़ों के नीचे से हाथ का ग्रिप बना कर ऊपर उठा लिया। उसके मुँह से बीड़ी की या कुछ और चीज़ की दुर्गंध आई।
" छि: छि: अपना मुँह धो कर आओ....बल्कि ब्रश भी करो....!"
उसे मेरा कहना अच्छा नहीं लगा....पर उसने ब्रश करके मुह को साफ़ कर लिया।
"बस अब तो ठीक है ना....!" मुस्करा कर उसने अपनी बाहें फ़ैला दी। मैं उसके पास जाकर उससे लिपट गई।
"हां....अब देखो कितने अच्छे लग रहे हो...." मैंने उसे चूम लिया। एकबारगी मुझे लगा कि सुधीर कोई नशा किये हुए है। उसकी आंखो में मुझे वासना के डोरे तैरते नजर आये। मुझ पर भी धीरे धीरे वासना क रंग चढ़ने लगा। हम एक दूसरे को बुरी तरह चूमने लगे। वो मेरे अंगों को दबाने लगा। मेरी चूंचियाँ कड़ी हो गई। मैं मदहोश होने लगी। मेरी चूत गीली होने लगी थी।
"कामिनी.... आज कुछ करें.... मेरा मन बहक रहा है....!"
"मेरे राजा.... मेरा मन भी बहक रहा है.... कुछ करो ना...."
सुधीर ने अपना हाथ मेरी टॉप के अन्दर डाल दिया और मेरी चूंचियाँ दबा दी। उसका लण्ड भी मुझे चोदने के लिये उतावला हो रहा था। उसके कड़े लण्ड को मैंने अपने अपने हाथ में भींच लिया। उसके मुख से आह निकल गई। मैं भी बेकाबू होती जा रही थी।
"....ये पैण्ट तो उतारो.... बड़ा तड़प रहा है बेचारा........!"
सुधीर ने अपना पैंट उतार दिया....फिर कमीज और बनियान भी उतार दिया। इतनी देर में मैंने भी अपनी जीन्स उतार दी और टॉप भी उतार दिया। अब हम दोनों बिल्कुल नंगे खड़े थे। उसका शरीर देख कर मैं उत्तेजित हो उठी। खास करके उसका कठोर और तन्नाया हुआ लण्ड देख कर मेरी चूत फ़ड़क उठी। उसके लण्ड को पकड़ कर सुपाड़े की चमड़ी मैंने ऊपर खींच दी। उसका लाल सुपाड़ा चमक उठा। उसने अपने बिस्तर पर मुझे बैठा दिया.... फिर हम दोनों किस करते हुए बिस्तर की चौड़ाई पर लेट गये। मेरे मन में आनन्द की हिलौरे आने लगी, मैं मन ही मन में चुदाई के लिये बेताब हो उठी... मेरे दोनों पांव नीचे ही थे। सुधीर ने नीचे खड़े हो कर ही अपना लंड मेरी चूत पर रख दिया। मैंने अपनी चूत थोड़ी सी फ़ैला दी। उसने अपना लण्ड मेरी चूत पर रख दिया और हौले से अन्दर घुसा दिया। मैं आनन्द से भर गई। उसने अब एक ही धक्के में पूरा लण्ड अन्दर घुसा डाला। मुझे थोड़ी सी तकलीफ़ हुई.... पर सहन कर गई।
"सुधीर.... धीरे धीरे डालो ना....!"
पर वो अब कहां सुनने वाला था। उसने तो एकदम से ही तेज धक्के चालू कर दिये। मुझे अब तो वास्तव में लगा कि वो नशे में है....उसके मुख से अब कुछ तेज गन्ध आने लगी थी। जो मेरे आनन्द को रोक रहा था। उसकी आँखों में लाल डोरे बढ़ गये थे। जाने मुझे आज मजा नहीं आ रहा था। उसके चोदने में नरमाई बिलकुल नहीं थी.... मुझे तकलीफ़ भी हो रही थी.... । ऐसा लगा कि ना जाने क्यों आज सुधीर बहुत अधीर था और शायद जल्दी में नजर आ रहा था....
"सुधीर.... रुको.... कोई चिकनाई लगा लो....!"
पर उसकी सांस फूलने लगी थी....शायद वो थक गया था। अचानक ही उसका वीर्य छूट पड़ा। और उसने मेरी चूत के अन्दर ही वीर्य छोड़ दिया।
सुधीर जैसे ही हटा मुझे अचानक ही एक चेहरा और दिखा.... वो भी नंगा खड़ा था और उसका लण्ड भी तन्ना रहा था। उसने एकदम से मुझे जकड़ लिया। मेरी समझ में कुछ आता उसके पहले उसने मुझे जकड़ लिया।
मैं अपने शरीर को झटके दे कर छुड़ाने की कोशिश करने लगी। पर ये प्रयास बेकार साबित हुआ। ना जाने वो कमरे में कब आया और उसने अपने खुद के कपड़े कब उतार लिये, मुझे पता ही नहीं चला। मैं तो सुधीर की चुदाई का आनन्द ले रही थी, मेरी तो आंखे बन्द थी.... ये कब आ गया .... तभी उसका लण्ड मेरी चूत में घुसता सा लगा.... उसका लण्ड बहुत मोटा था.... झटके से उसने जोर का धक्का मारा और उसका लण्ड मेरी चूत में घुस गया। उसका लण्ड मोटा और खुरदरा था। मेरी तंग चूत में उसका लण्ड रगड़ता हुआ गहराई तक बैठ गया। मुझे तेज दर्द हुआ, मेरे मुख से चीख निकल गई। उसी समय सुधीर ने मेरे दोनों हाथ कस कर पकड़ लिये.... मुझे कुछ समझ में नहीं आया....सब कुछ बुरे सपने जैसा लग रहा था। ....