मेरे प्रिय Xmyra के पाठको, आप सबको Xmyra पर हाल ही में प्रकाशित होने वाली मेरी रचना ‘यौन-संसर्ग का सीधा प्रसारण’ को पसंद करने और उस पर दी गई प्रतिक्रिया के लिए मैं हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद देती हूँ! आपने Xmyra पर बहुत सी रचना पढ़ी होंगी और उन सब रचनाओं ने आपकी कामवासना को ज़रूर जागृत करके आप को आनंदित भी किया होगा! मैं उन सभी कामवासना वर्धक रचनाओं की गणना में कुछ वृद्धि करने की कोशिश करते हुए, मैं अपनी एक इन्टरनेट सखी के द्वारा भेजी गई घटना के विवरण को प्रस्तुत करती हूँ! इस रचना से मेरा प्रयास रहेगा कि मैं आप सब के अंदर जागृत कामवासना की आग को थोड़ा और प्रज्वलित करके आपको आनन्दित कर सकूँ! मैं आशा करती हूँ कि आप सब के सहयोग और आशीर्वाद से मैं अपने इस प्रयास में ज़रूर सफल होऊँगी! इससे पहले कि मैं अपनी उस सखी की घटना के बारे कुछ लिखूं मैं आप सब को उसका थोड़ा सा परिचय करा दूँ! उसका नाम है शालिनी मिश्रा, लेकिन उसके परिवार के सदस्य अथवा सभी मित्र-गण उसे शालू कह कर ही पुकारते हैं! उसकी उम्र 23 वर्ष है, रंग गोरा है तथा उसके गदराए बदन का माप 34-26-36 है जो कि उसको उसके माता-पिता की ओर से प्रदान हुआ है! उसकी उभरी हुई छातियाँ कुछ बड़ी और सख्त हैं तथा कमर पतली तथा बहुत ही नाज़ुक सी लगती है! लेकिन उसकी बाजू, जांघें और टाँगें बहुत ही सुडोल, मज़बूत और ताकतवर हैं, उसका चेहरा गोल हैं और उसकी बड़ी-बड़ी नीले आँखें ऐसी है कि उन आँखों की गहराई में झाँकने वाला अपने को गहरी झील में गोते लगाता महसूस करता है। क्योंकि मैं आप और शालू के बीच में रह कर कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहती इसलिए मैं चाहूंगी कि आप सब शालिनी की रचना का विवरण उसी के मुख से सुनें इससे आप सबको अधिक आनन्द आएगा। मेरे प्रिय Xmyra के मित्रों को शालिनी का प्यार भरा नमस्कार ! क्योंकि मेरे परिवार के सब लोग गाँव में ही रहते हैं इसलिए मैं शहर में अकेली ही एक छोटे से फ्लैट को किराए पर लेकर उसमें रहती हूँ। जब सभी घर वालों ने अचंभित हो कर दादा जी से उस लड़के के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वह केदारनाथ के पास ही के गाँव रामबाड़ा में रहने वाली उनकी छोटी बहू (यानी मेरी छोटी चाची) का सबसे छोटा भाई साहिल है। उस वर्ष जून के माह में आई बाढ़ के कारण रामबाड़ा पूरी तरह नष्ट हो चुका था और साहिल के परिवार के सभी अन्य सदस्य भी उस हादसे में गुज़र चुके थे। जब दादा जी को साहिल हरिद्वार स्टेशन पर मजदूरी करते हुए मिला तब दादा जी ने उसे पहचान लिया था। क्योंकि तीन दिनों के बाद ही मेरी छुट्टियाँ समाप्त होने वाली थी इसलिए मैं साहिल से ज्यादा मेलजोल नहीं बढ़ा पाई थी लेकिन फिर भी कभी कभी कुछ बात तो हो ही जाती थी। तब उसने बताया कि वह भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहता था इसलिए शहर आया था! उसने मुझे यह भी बताया कि उत्तरांचल सरकार की तरफ से केदारनाथ त्रासदी से पीड़ित विद्यार्थी को दी जा रही राहत के अंतर्गत, उसे मेरे ही कॉलेज में निशुल्क पढ़ाई का संयोग मिला था। मैंने जब दादा जी का पत्र पढ़ा तो हैरान और परेशान हो गई, दादा जी ने पत्र में लिखा था कि साहिल ने 10+2 कक्षा पास कर रखी थी और आगे पढ़ कर इंजिनियर बनाना चाहता है ! क्योंकि सरकार ने साहिल को यह अवसर दिया है इसलिए वह उसे शहर भेज रहे हैं। क्योंकि घर में दादा जी की बात का कोई भी विरोध नहीं करता है इसलिए मैं भी उनकी लिखी बात का अनादर नहीं कर सकती थी, अतः दोपहर तीन बजे कालेज बंद होने पर साहिल को अपने साथ ही अपने फ्लैट में ले गई। इतना सब बताने के बाद मैं अपने बिस्तर पर आँखें बंद कर सुस्ताने के लिए लेट गई। कुछ देर के बाद जब मैं उठी तो देखा कि साहिल ने मेरी कही बात के अनुसार अपना बिस्तर कमरे के दूसरे कोने में नीचे चटाई पर बिछा लिया था। उसने अपना सूटकेस और बैग को भी सामने वाली दीवार के पास रखे मेरे सामान के साथ ही सजा कर रख दिया था। उसी समय मुझे रसोई में से बर्तन खड़कने की ध्वनि सुनाई दी और जब मैं वहाँ देखने चली गई तो पाया कि साहिल अपने बैग में से मेरी माँ के द्वारा भेजा गया खाने पीने का सामान निकाल कर रसोई में सजा रहा था। इसके बाद मैंने गुसलखाने में जाकर हाथ मुँह धोकर आई, तब तक साहिल चाय ले कर कमरे में आ गया था। हम दोनों ने चाय पी और फिर मैंने साहिल के प्रवेश पत्र भरने के लिए उसके सारे प्रमाण-पत्र और दूसरे कागज़ देखे और उसे प्रवेश पत्र भरने में सहायता की। जब प्रवेश पत्र पूर्ण रूप से भर दिया गया तब मैंने साहिल को उन सब को एक फाइल में लगाने के लिए कहा और रात के खाने का प्रबंध करने के लिए रसोई में घुस गई ! एक घंटे के बाद जब मैं रसोई से निकली तो देखा की साहिल भी स्नान कर तथा कपड़े बदल कर नीचे बैठा उस प्रवेश पत्र को एक बार फिर से पढ़ कर अपनी तसल्ली कर रहा था। रसोई की गर्मी के कारण मैं पसीने से भीग गई थी, इसलिए तुरंत ही रात को सोते के वक्त पहनने वाली नाइटी लेकर स्नान करने के लिए गुसलखाने में घुस गई! खूब अच्छी तरह से साबुन मल मल कर नहाने के बाद मैं तरो-ताजा हो कर जब कमरे में आई तो देखा की साहिल ने रात का खाना मेज़ पर परोस दिया था और मेरे आने की प्रतीक्षा कर रहा था ! मैं अगले दिन कॉलेज में दिए जाने वाले लेक्चर की तैयारी करने लगी और साहिल एक किताब में से कुछ पढ़ने में व्यस्त हो गया। उसका 6 फुट ऊँचा गठा हुआ शरीर और उसकी मांसपेशियाँ देख कर मैं मंत्रमुग्ध हो गई तथा काफी देर तक अपने विचारों में ही वहीं खड़ी रही ! मैं दोबारा 11 बजे प्रशासन कार्यालय गई तो साहिल से पता चला कि उसे ‘इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग’ में प्रवेश मिल गया था लेकिन अधिकारी ने छात्रावास के बारे में अभी कुछ नहीं बताया था। प्रशासन अधिकारी ने आश्वासन दिया कि जैसे ही छात्रावास का इंतजाम हो जाएगा तब वह उसकी सूचना मुझे दे देगा। इसके बाद साहिल अपनी क्लास में चला गया और मैं स्टाफ रूम में अगले लेक्चर की तैयारी में जुट गई। मैं खाना बना कर कमरे में अपने बिस्तर पर लेटी थी जब गुसलखाने से साहिल तौलिया बांधे हुए बाहर निकला। शायद उसने मुझे नहीं देखा था इसलिए उसने तौलिया खोल के एक तरफ रख दिया और नंगा हो कर अंडरवियर पहनने लगा। बहुत पहले घर पर दादाजी, पिताजी और भाई का लिंग एक आध बार अनजाने से देखने को मिला था लेकिन वह सब इतने लम्बे और मोटे नहीं थे। साहिल ने जब मुझे देखा तो थोड़ा झेंपा और फिर जल्दी से कपड़े पहन कर तौलिया सुखाने के लिए बाहर छज्जे पर चला गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ इसलिए उस उत्तेजना को शांत करने के लिए मैंने अपने जिस्म पर ठंडा पानी डालने लगी लेकिन उसका कोई भी असर नहीं हुआ। लगभग पांच मिनट तक ऐसा करने के बाद मुझे गुप्तांग के अन्दर बहुत ही अजीब सी गुदगुदी महसूस हुई, उसके बाद एक झुरझुरी के साथ गुप्तांग में सिकुड़न सी महसूस हुई तथा चिपचिपा सा पानी बाहर निकलने लगा। उस घटना के बाद रात तक सब सामान्य ही चलता रहा और रोज़ की तरह रात को दस बजे हम दोनों अपने अपने बिस्तरों में सो गए। लगभग एक सप्ताह बीतने के बाद रविवार के दिन नहाते हुए मुझे गुसलखाने के दरवाज़े में एक छोटी सी दरार दिखी ! नहाने के बाद मैंने इसके बारे में जाँच करने की सोची और कपड़े पहन कर बाहर आई तो देखा कि साहिल रसोई में चाय बना रहा था। जब हम दोनों चाय पी रहे थे तब मैंने साहिल को बाहर भेजने के अभिप्राय से उसे बाज़ार से कुछ सामान लाने को कहा और एक सूचीपत्र बना कर उसके हाथ में पकड़ा दी। चाय पीकर जब साहिल सामान लेने के लिए बाजार चला गया तब मैंने बाहर का दरवाज़ा अच्छी तरह से बंद कर दिया! इसके बाद मैंने गुसलखाने की बत्तियाँ जला दी और उसका दरवाज़ा बंद करके उसमें जो दरार थी उसमे से अन्दर की ओर झाँक कर देखा। अन्दर के जो अंश दिख रहे थे उस स्थान को जानने के लिए मैंने दरवाज़ा खोल कर देखा तो पाया की वह नल के पास ही नहाने का स्थान है। यह देख कर मेरी बांछें खिल उठी और मुझे विश्वास हो गया कि अब साहिल का लिंग देखने की मेरी इच्छा ज़रूर पूरी हो जाएगी। जैसे ही मैंने साहिल को बताया कि खाना तैयार हो गया है तो वह जल्दी से अपने कपड़े उठा कर गुसलखाने में नहाने चला गया और मेरे लिए उस शुभ घड़ी का इंतज़ार समाप्त हो गया। मुझे दरवाज़े की दरार में से साहिल नहाने वाले स्थान के सामने खड़ा हुआ दिखाई दिया और वह अपने लिंग को पकड़ कर आहिस्ता आहिस्ता हिला रहा था। कुछ देर ऐसा करने के बाद उसने लिंग को तेज़ी से हिलाना शुरू कर दिया और देखते ही देखते बहुत तेज़ी से हिलाने लगा था। साहिल की तेज़ साँसें चलने की आवाज़ें सुनाई देने लगी और वह अपने लिंग को हाथ से दबा तथा झटक कर उसमें से बचे खुचे रस को निकालने लगा था। इसके बाद साहिल ने अपने लिंग को पानी से अच्छी तरह धोया और दीवार पर लगे रस को भी पानी डाल कर नाली में बहा दिया। जब वह खड़ा नहा रहा था तब उसका गोरा-चिट्टा लिंग छोटा तो हो गया था लेकिन उसके जघन-स्थल के काले बालों के बीच देखने में बहुत इस आकर्षक लग रहा था, उसके शरीर पर गिर रहा पानी ऊपर से नीचे बहता हुआ उसके लिंग से होता हुआ झरने की एक धार की तरह बन कर नीचे गिर रहा था। इस मनमोहक दृश्य को देखने से मेरा पूरा शरीर रोमांचित हो उठा और मैं बहुत ही उत्तेजित हो उठी ! खाना खाकर साहिल तो लम्बी तान कर सो गया लेकिन मैं बहुत देर तक जागती रही और गुसलखाने के अन्दर साहिल के नहाते समय लिंग का दृश्य मेरी आँखों के सामने एक चलचित्र की तरह बार बार घूमने लगा। दिल तथा दिमाग में हो रहे संघर्ष के निर्णय की प्रतीक्षा में मैं सारी रात भर करवटें ही बदलती रही लेकिन किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाई ! उन दिनों साहिल जब भी नहाने जाता मैं गुसलखाने के दरवाजे की उस दरार पर अपनी आँख लगा कर बैठ जाती और उसके लिंग को निहारती रहती ! अगले दिन मैं सुबह साहिल के साथ उसी शब्दावली बारे में सोचते सोचते कॉलेज पहुँची। जब मैं वहाँ अपनी उपस्थिति लगा रही थी तभी प्रशासन कार्यालय के अधिकारी ने बताया कि साहिल के लिए छात्रावास में प्रबन्ध हो गया था। उस अधिकारी के द्वारा कहे गए शब्दों ने मुझे चौंका दिया तथा मेरी सोचने की शक्ति पर वज्रघात किया और मैं बदहवास होकर अध्यापक-कक्ष की ओर चल पड़ी। मैंने जब उसे कहा कि वह शाम को सामान एकत्रित कर के स्थानान्तरण कर सकता है, तब उसने उत्तर दिया कि उसके अगले दो पीरियड खाली थे इसलिए वह इस खाली अवधि में यह काम करना चाहता था और सांझ को छात्रावास में चला जायेगा। दोपहर तीन बजे साहिल मेरे पास आया और हम दोनों साथ साथ घर पहुँचे ! उसने कहा- दीदी, अब मुझे जाना होगा, लेकिन मैं आपसे कॉलेज में तो मिलता ही रहूँगा ! इतने दिनों तक आपने मुझे अपने साथ रखा और मेरी सहायता की उसके लिए मैं आपका उपकार कैसे चुका पाऊँगा, मुझे समझ नहीं आ रहा ! मैं आपका धन्यवाद कैसे कहूँ इसके लिए भी मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं ! लेकिन अगर आपको कभी भी किसी भी समय मेरी आवश्कता महसूस हो आप निस्संकोच मुझसे कह सकती हैं ! साहिल ने सिर्फ इतना कह कर अपना सामान उठाया और घर से बाहर चला गया और उसके जाते ही मेरी आँखें नम हो गई !
सब से पहले आप लोग विनती है कि आप सब मेरा स्नेह भरा अभिनन्दन स्वीकार कीजियेगा !
मैं उत्तरांचल के एक छोटे से कसबे में पैदा तथा पली और बड़ी हुई हूँ, मैंने उसी कसबे के एक स्कूल में 10+2 तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद आगे की शिक्षा ग्रहण करने के लिए पास के एक शहर के एक इंजीनियरिंग कालेज से आगे की पढ़ाई की। इंजीनियरिंग की स्नातक होने के बाद अब मैं उसी कालेज में ही लेक्चरार के पद पर नियुक्त हूँ और विद्यार्थियों को पढ़ाती हूँ।
पिछले वर्ष गर्मी की छुट्टियों में जब मैं घर गई हुई थी, तब जुलाई के माह में मेरे दादा जी चार दिनों के लिए हरिद्वार और ऋषिकेश की यात्रा पर गए थे, जब वह यात्रा से वापिस आये तो अपने साथ एक 19 वर्ष के नौजवान को भी साथ ले आये थे।
दादा जी से मिलने के बाद उसने उन्हें रामबाड़ा में हुए प्राकृतिक त्रादसी और उस हादसे में उसके परिवार के सदस्यों के खो जाने के बारे में बताया। जब उसकी बुरी हालत देखी तो दादा जी से रहा नहीं गया और वे उसे अपने साथ ही घर पर ले आये।
मेरी छुट्टियाँ समाप्त होने पर मैं वापिस शहर आ गई और अपने काम में व्यस्तता के कारण मैं साहिल को जैसे भूल ही गई!
मुझे शहर आए अभी दस दिन ही हुए थे कि एक दिन दोपहर के डेढ़ बजे साहिल मेरे कॉलेज में मुझे मिलने आया। मैं उसे वहाँ देख कर हैरान हो गई और उससे उसके शहर आने की वजह पूछी।
उसने विनम्रता से मुझसे आग्रह किया कि मैं कालेज में प्रवेश के लिए उसकी सहायता कर दूँ और उसने दादा जी का लिखा एक सन्देश पत्र मेरे हाथ में रख दिया।
साथ में उस पत्र में उन्होंने मुझे निर्देश भी दिए थे कि मैं साहिल को कालेज में प्रवेश के लिए सहायता करूँ और जब तक उसको छात्रावास में स्थान नहीं मिल जाता तब तक उसे अपने साथ ही रखूँ और उसकी सब ज़रूरतों का ध्यान भी रखूँ।
घर पहुँच कर मैंने उसे एक कोने में अपना सामान रखने को कह दिया और घर में क्या क्या वस्तु कहाँ पर पड़ी है अथवा कहाँ रखनी है उसके बारे में भी समझा दिया। मैंने उसे यह बता दिया कि सिर्फ एक ही बैड होने के कारण उसे नीचे चट्टाई पर ही बिस्तर लगा कर ही सोना पड़ेगा।
जब मैंने इधर उधर देखा और मुझे साहिल नहीं दिखा तब मैं उठ कर बैठ गई और सोचने लगी कि वो कहाँ गया होगा !
वह गैस पर हम दोनों के लिए चाय भी बना रहा था और उसने चाय के साथ खाने के लिए माँ के द्वारा भेजे हुए पकवान भी प्लेट में लगा रखे थे !
जब मैंने उससे पूछा कि चाय क्यों बना रहे हो तो उसने कहा क्योंकि मैं उसे बहुत थकी सी लग रही थी इसलिए उसने सोचा कि चाय पीने से मेरी कुछ थकावट दूर हो जायेगी !
हम दोनों ने साथ साथ खाना खाया और उसके बाद मिल कर ही बर्तन धोये तथा रसोई को साफ़ कर के कमरे में आकर अपने अपने बिस्तर पर बैठ गए !
रात को दस बजे मैंने साहिल को सोने से पहले लाइट बंद करने का निर्देश दिया और करवट बदल कर सो गई।
सुबह 6 बजे जब मेरी नींद खुली तो देखा की साहिल बिस्तर पर नहीं था। जब उसका पता करने के लिए कमरे से बाहर निकली तो उसे छत पर व्यायाम करते हुए देखा।
जब अचानक साहिल मेरे सामने आ कर खड़ा हो गया तब मेरी चेतना लौटी और मैं भाग कर गुसलखाने में कॉलेज के लिए तैयार होने के लिए घुस गई।
तैयार होकर हमने चाय और नाश्ता किया और दोनों 9 बजे से पहले ही कॉलेज पहुँच गए। तब मैंने साहिल को प्रशासन कार्यालय में लेजा कर उसके प्रवेश के बारे में उच्च अधिकारी से बात की। जब वहाँ की कार्य-विधि शुरू हो गई तब मैं साहिल को वहीं छोड़ कर अपनी कक्षा को पढ़ाने लिए चली गई।
जब मैंने प्रशासन अधिकारी से साहिल के लिए छात्रावास के बारे में पूछा तो उसने बताया कि अभी उनके पास छात्रावास में जगह नहीं थी।
उसने यह भी बताया कि डायरेक्टर साहिब कह रहे थे कि कुछ छात्रों के लिए पास में ही एक घर किराए पर लेकर उसमें छात्रावास बना देंगे, इसलिए साहिल और दूसरे छात्रों के प्रार्थना पत्र डायरेक्टर साहिब के पास भेज दिए गए थे !
उस दिन भी तीन बजे दोपहर के बाद हम दोनों मेरे फ्लैट पर आ गए और पिछले दिन की तरह अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए। इसी तरह कुछ दिन बीत गए और हम दोनों के बीच में अच्छा तालमेल बन गया था तथा घर का सारा काम बाँट कर कर लेते थे।
तभी दशहरा की छुट्टी के दिन एक घटना घटी जिसने मुझे कुछ विचलित कर दिया! उस दिन जब मैं रसोई में दोपहर के लिए खाना बना रही थी तब साहिल गुसलखाने में नहाने के लिए चला गया।
उसकी जाँघों के बीच में लटकते हुए सात इंच लम्बे और ढाई इंच मोटे लिंग को देख कर मेरी आँखें फटी की फटी रह गई, क्योंकि आज तक मैंने इतना लम्बा और मोटा लिंग नहीं देखा था।
जब साहिल जांघिया पहन कर मेरी ओर मुड़ने लगा है तो मैं झट से घूम कर उसकी ओर पीठ करके लेट गई और ऐसा जताया कि मैंने कुछ देखा ही नहीं है।
साहिल के बाहर जाते ही मैं भी उठी और अपना तौलिया तथा कपड़े लेकर गुसलखाने में नहाने के लिए चली गई। नहाते हुए मेरी आँखों के सामने साहिल का लिंग घूमने लगा और मेरे जिस्म के अन्दर एक तरह की उत्तेजना होने लगी।
जब दस मिनट तक वह आग शांत नहीं हुई तब मैंने आँखें बंद कर ली और अपने आप को ढीला छोड़ दिया!
तब अनायास ही न चाहते हुए भी मेरा दायाँ हाथ मेरे गुप्तांग पर चला गया और मैंने अपनी बड़ी उंगली उसके अन्दर डाल कर उसे अन्दर बाहर करने लगी तथा अपने बाएं हाथ से मैं अपने दुधु को दबाने लगी !
एक मिनट के बाद जब वह झुरझुरी बंद हुई और चिपचिपा पानी भी रिसना बंद हुआ तब मैंने पाया कि मेरी उत्तेजना भी शांत हो गई थी।
इसके बाद तो मैं जल्दी से नहा कर तथा कपड़े पहन कर गुसलखाने से बाहर आई और घर के अन्य कार्य में व्यस्त हो गई।
अगले दिन से मैंने महसूस किया कि मैं साहिल का लिंग देखने के लिए बहुत ही व्याकुल रहने लगी थी, उसे देखने का अवसर खोजने के लिए बहुत ही आतुर थी लेकिन ऐसा कोई मौका ही नहीं मिल रहा था।
मैंने उस दरार में से झांक कर देखा तो मुझे कमरे में साहिल के बिस्तर के कुछ अंश ही दिखाई दिए, लेकिन कमरे से गुसलखाने के अन्दर का क्या दिखाई देता है इसका पता नहीं चल सका।
पहले तो मुझे कुछ भी साफ़ दिखाई नहीं दिया लेकिन थोड़ी देर के बाद जब मेरी आँख वहाँ की रोशनी से अभ्यस्त हो गई और मैंने थोड़ा इधर उधर हिल कर देखने की कोशिश की तब मुझे अन्दर के कुछ अंश साफ़ साफ़ दिखाई देने लगे।
साहिल के सामान लेकर आने के बाद हमने शाम तक का सारा समय रोज़ की तरह ही व्यतीत किया लेकिन जैसे रात नज़दीक होती जा रही थी मेरी अधीरता बढ़ती जा रही थी, मुझे पता था कि साहिल रात का खाना खाने से पहले नहाता है इसलिए मैं इंतज़ार कर रही थी कि कब साहिल नहाने जायेगा और कब मुझे उसका लिंग नज़र आएगा।
उसके गुसलखाने के अन्दर जाते ही मैं चुपके से उठी और दरवाज़े के पास खड़े होकर थोड़ा इंतज़ार किया! फिर जैसे ही नल चलने की आवाज़ आई मैंने झुक कर दरार पर नज़र गाड़ कर अन्दर का नज़ारा झाँकने लगी।
अब उसके मुँह से निकल रही आवाजें भी सुनाई देने लगी थी और उसका बदन भी अकड़ता हुआ दिख रहा था। तभी उसने एक जोर से आवाज़ निकाली और उसका बदन अकड़ गया तथा उसके लिंग में से सफ़ेद रस की छह सात तेज धार निकल कर सामने दिवार पर जा गिरी।
लिंग हिलाने की क्रिया के बाद साहिल नीचे बैठ गया और अपने बदन को साबुन मल मल कर नहाने लगा, कुछ देर बाद वह उठ कर खड़ा हो गया और बाल्टी में से पानी लेकर अपने ऊपर डाला तथा बदन पर लगे साबुन को धो दिया।
मैंने अपने कपड़ों के ऊपर से ही अपने गुप्तांग को मसलना शुरू कर दिया और उसमें होने वाली हलचल का आनन्द लेने लगी। जैसे ही साहिल नहा कर तथा अपना शरीर पोंछ कर कपड़े पहनने लगा तब मैं गुसलखाने के दरवाज़े के सामने से उठ कर रसोई में चली गई और रात का खाना परोसने में लग गई।
मेरा दिल मुझे यह कह रहा था कि मैं उठ कर साहिल के पास जाऊँ और उसके लिंग तो पकड़ कर मसल दूँ !
उस लिंग को इतना हिलाऊँ कि उसका सारा वीर्य रस निकल दूँ लेकिन मेरा दिमाग मुझे ऐसा कुछ भी करने से रोक रहा था !
अगले एक सप्ताह मैं इसी उधेड़बन में उलझी रही कि मुझे दिल की बात सुननी चाहिए या फिर दिमाग की लेकिन कोई अंतिम फैसला नहीं कर पाने के कारण यथास्थिति ही बनी रही !
सप्ताह व्यतीत होते होते मैं साहिल को पाने के लिये कुछ अधिक व्याकुल एवं अधीर हो उठी थी, अपनी वासना के आगे विवश होकर मैंने अगले दिन साहिल से इस बारे में बात करने का निश्चय किया तथा उससे अपनी चाहत कैसे बतानी के लिए क्या शब्दावली का प्रयोग करना है इसकी रचना करने लगी !
उसके बाद उस अधिकारी ने छात्रावास के कमरे की चाबी साहिल को दी और निर्देश दिया कि उसे आज ही सामान सहित उस कमरे में स्थानान्तरण कर जाना चाहिए।
अध्यापक-कक्ष में पहुँच कर मैं अभी अपने आप को संभाल भी नहीं पाई थी कि साहिल मेरे पास आया और अपना सामान एकत्रित करने के लिए मुझे से घर की चाबी मांगी।
मैंने भारी मन से उसे घर की चाबी दे दी और अपनी कक्षा में लेक्चर देने के लिए प्रस्थान कर गई।
कुछ देर विश्राम करने के बाद साहिल ने मुझे चाय बना कर पिलाई और फिर छात्रावास के लिए विदा होने के लिए आज्ञा मांगी।
मैं हताश सी अपने बिस्तर में लेट गई और मैंने अपनी आँखों से निकली अश्रुधरा से अपने तकिये की प्यास बुझने दी। मेरे ये अश्रु साहिल के छात्रावास जाने के कारण नहीं थे बल्कि उसके द्वारा कहे गए एक शब्द ‘दीदी’ से घायल हुए मेरे दिल से उठ रही टीस के कारण थे !
