नमस्ते दोस्तो, उम्मीद है कि मेरी पिछली कहानियों ने आपका मनोरंजन किया होगा। आपके ढेरों खतों ने मुझे बहुत ख़ुशी दी और मुझे यह जानकर अच्छा लगा कि मेरी लम्बी-लम्बी कहानियाँ आपको बोर नहीं कर रही हैं। आइये अब चलते हैं पिछली कहानी से आगे की ओर… घर लौटते वक़्त वंदना के चेहरे पे एक अद्भुत सा सुकून था और वो बार-बार मेरी तरफ तिरछी नज़रों से देख कर शर्माते हुए मुस्कुरा रही थी, कार में बज रहे धीमे रोमांटिक गाने ने माहौल और भी रोमांटिक बना रखा था, मैं भी मुस्कुराता हुआ चोर नज़रों से उसकी तरफ देख लेता था। कुल मिलाकर हम दोनों अपनी दुनिया में खोये थे और एक दूसरे को बिना कुछ कहे अपनी- अपनी खुशियाँ ज़ाहिर करते हुए घर पहुँच गए! आहिस्ते से कार मैंने वंदना के घर के दरवाज़े पे रोक दी। कार रुकते ही मानो मेरी तन्द्रा टूटी हो… मेरा ध्यान सीधा बंद दरवाज़े पर चला गया, पूरा घर अंधेरे में डूबा हुआ था, सारी खिड़कियाँ और दरवाज़े बंद थे। अभी थोड़ी देर पहले ही मैंने वंदना के साथ इतने हसीन पल बिताये थे और रेणुका को अपने दिमाग से निकाल कर सब कुछ लगभग भूल सा गया था लेकिन पता नहीं क्यूँ वंदना के घर या यूँ कहें कि रेणुका जी के घर के बंद दरवाज़े और खिड़कियों ने मेरे मन में उथल पुथल मचा दी। मेरे दिमाग में कई सवाल कौंध गए… मेरे मन में कई अजीब-अजीब तरह के दृश्य उभरने लगे जिसमे रेणुका जी अरविन्द जी के साथ तरह तरह की मुद्राओं में सम्भोग करती नज़र आने लगी… अभी थोड़ी देर पहले मैं वंदना के मोह में मरा जा रहा था और अभी रेणुका जी को लेकर ऐसे-ऐसे ख्याल…मेरा मन चंचल हो उठा था। मेरे चेहरे पे अचानक से उदासी छा गई। उसके इस सवाल ने मुझे चौंका दिया और मैंने झट से उसकी तरफ देखा। मेरे मन में भले ही कई तरह के ख्यालात पनप रहे हों लेकिन वंदना इतनी खुश थी कि मैं उसे किसी भी कीमत पर दुखी नहीं कर सकता था… सच कहें तो मैं उसे कुछ बता ही नहीं सकता था। अब जरूरत यह थी कि पहले मैं अपने आपको समझूँ और खुद पहले यह निश्चित करूँ कि मुझे क्या करना चाहिए… रेणुका जी के मोह जाल में फंस कर दुखी होकर वंदना को भी दुखी करूँ या रेणुका जी को एक हसीन ख्वाब समझ कर भूल जाऊ और वंदना के प्रेम को स्वीकार कर लूँ। मेरा सर थोड़ी देर के लिए स्तब्ध सा लगने लगा मुझे… मैं कुछ सोच नहीं प् रहा था… लेकिन इस अवस्था से बहार निकलना भी जरूरी था और वर्तमान की स्थिति को भी सामान्य करना था ताकि वंदना को किसी तरह का कोई शक न हो और उसे कोई आघात न पहुँचे। मैंने धीरे से वंदना की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए उसे अपनी ओर खींच कर गले से लगा लिया- वंदु… तुम चिंता न करो, मैं सिर्फ इस बात से दुखी हूँ कि हमें अब अलग होना होगा और अपने अपने घर में जाकर अकेले अकेले ही सोना होगा! सच मानिए ऐसा मैंने जानबूझ कर या सोच-विचार कर नहीं कहा था… बस मेरे मुख से निकल गया। ‘ओह समीर… ऐसे मत कहिये… अगर आप इस बात से दुखी हो जायेंगे तो मैं रात भर सो भी नहीं पाऊँगी…’ वंदना ने मुझसे थोड़ा अलग होते हुए कहा और मेरे गालों पे अपने होठों से एक प्रेम भरा चुम्बन जड़ दिया। हम दोनों दरवाज़े पे पहुँचे और जैसे ही मैं घंटी बजाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया, वैसे ही वंदना ने मेरा हाथ रोक लिया और मुझसे लिपट गई- I Love You… मैं आज की रात कभी नहीं भूलूँगी! जवाब में मैंने उसे अपनी बाहों में जोर से भींच लिया और उसके बालों में अपनी उँगलियाँ फेरते हुए उसके सर पे चूम लिया। 3-4 बार घंटी बजाने के बाद दरवाज़े की कुण्डी खुलने की आवाज़ आई और धीरे से दरवाज़ा खुला। मेरा दिल जोर से धड़क रहा था… मुझे पूरी उम्मीद थी कि रेणुका जी ही दरवाज़ा खोलेंगी। ‘अरे आइये आइये… आ गए आप लोग, बड़ी देर लगा दी?’ अरविन्द भैया मुस्कुराते हुए दरवाज़े के दूसरी तरफ खड़े थे। एक तरफ तो मैं रेणुका के सामने आना नहीं चाह रहा था और दूसरी तरफ मेरी आँखें हर तरफ उसे ही ढूँढ रही थी… ‘आइये समीर… अंदर आइये न!’ अरविन्द भैया ने मुझे अन्दर आने को कहा। मेरी आँखें बरबस उनकी तरफ चली गईं और मैं एकटक उनकी तरफ देखने लगा… यह भी भूल गया की अरविन्द जी मेरे सामने ही खड़े थे। मुझे तो बस अपने मन में उठ रहे सवालों की चिंता थी जिनका जवाब मैं रेणुका को ऊपर से नीचे तक देखते हुए और उसके चेहरे पे आ रहे भावों को समझते हुए ढूंढ रहा था। ‘आइये न समीर जी… बस एक कप कॉफ़ी पी लीजिये फिर चले जाइएगा। अब इतना तो वक़्त दे ही सकते हैं न आप?’ रेणुका अब मेरे और अरविन्द भैया के पास पहुच चुकी थी और उसने फिर से मुझसे घर के अन्दर आने को और कॉफ़ी पीने को कहा। ‘बड़ा चहक रही हैं आप… लगता है कुछ ज्यादा ही प्यार मिल रहा है अरविन्द जी से?’ मैंने मुस्कुराते हुए रेणुका की तरफ देखकर धीरे से पूछा। हालाँकि मेरे सवाल में छुपा हुआ गुस्सा था जिसे मैंने रेणुका पर ज़ाहिर नहीं होने दिया। उसकी इस हरकत ने मेरे तन-बदन में आग सी लगा दी। मेरी आँखें वंदना को ढूंढने लगीं जो शायद अपने कमरे में कपड़े बदल रही थी। 5-7 मिनट के अन्दर ही अरविन्द भैया बाहर से कार को गराज में करके अन्दर आये और वंदना भी अपने कमरे से निकल कर हॉल में दाखिल हुई, दोनों आकर अगल बगल के सोफे पे बैठ गए। फिर अरविन्द भैया ने हम दोनों से पार्टी की बातें पूछीं और इसी तरह बातों का सिलसिला शुरू हो गया। कहानी जारी रहेगी।
अब तक आपने पढ़ा कि किस तरह मेरे और वंदना के बीच उस बरसात भरी रात में प्रेम की अविरल धारा बह निकली और हम दोनों ने जीवन के उस असीम आनन्द को प्राप्त किया जिसे पाने की चाहत इस पृथ्वी पे मौजूद हर जीव में होती है।
हे भगवान…ये मुझे क्या हो रहा था…!!
मैं यह निश्चित नहीं कर पा रहा था कि मुझे किस बारे में सोचना चाहिए और किस बारे में नहीं।
मेरी उदासी ने वंदना को भी चौंका दिया और उसने सहसा ही मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर मुझे अपनी तरफ खींचा या यूँ कहें कि झकझोरा- क्या हुआ समीर… आप एकदम से चुप क्यूँ हो गए?
वंदना ने चिंता भरे लहजे में पूछा।
‘क… क्क… कुछ नहीं वंदु…’ बस इतना कह कर मैंने अपना सर झुका लिया।
‘ओहो… अब बोलिए भी… अभी तो अप इतने खुश लग रहे थे, फिर अचानक क्या हो गया?’ वंदना ने मेरे झुके हुए चेहरे को अपने हाथों से उठाते हुए फिर से सवाल किया।
अब भला मैं उसे ये कैसे बताता कि मैं उसके घर के अन्दर चल रही उसकी माँ रेणुका और उसके पापा अरविन्द जी की रासलीला के बारे में सोच कर दुःखी हुआ जा रहा था।
यह उचित नहीं था…
क्या कहता मैं… यह कि जिस इंसान के साथ अभी थोड़ी देर पहले उसने अपने जीवन का सबसे हसीन पल गुज़ारा था वो उसकी माँ के बारे सोच कर परेशां है और उसके माता-पिता के बीच के सम्बन्ध से जलन महसूस कर रहा है…
नहीं, यह हरगिज़ नहीं कह सकता था मैं उसे !!
मेरे दिमाग ने यह कहा कि फिलहाल वंदना को उसके घर के अन्दर भेजूं और उससे विदा लेकर अपने कमरे में जाकर यह सोच विचार करूँ कि आगे क्या करना सही होगा।
मैंने धीरे से उसके कान में फुसफुसा कर यह बात कह दी।
शायद इस स्थिति में ईश्वर मेरी मदद कर रहा था और मुझसे वही कहलवा रहा था जो उस समय कहना उचित था।
जवाब में मैंने भी उसके गालों पे एक पप्पी ली और मुस्कुराते हुए उसे कार से बाहर निकलने का इशारा किया।
उसने मुझसे लिपट कर मेरे सीने पे अपना सर रख कर धीरे से कहा।
करीब 2 मिनट तक हम ऐसे ही रहे फिर अलग हो गए, मैंने हाथ आगे बढ़ा कर घंटी बजाई… मेरे हाथ काँप रहे थे और मेरे मन में वही उथल-पुथल चल रही थी।
सच पूछिए तो मुझे बिलकुल भी इच्छा नहीं हो रही थी कि मैं दरवाज़ा खुलवाऊँ और रेणुका के सामने जाऊँ।लेकिन कोई और चारा नहीं था।
‘अरे पापा पूछिए मत… इस बारिश ने परेशान कर दिया।’ वंदना ने चहकते हुए अपने पापा को जवाब दिया और अन्दर चली गई।
मैं अरविन्द जी को देख कर बस मुस्कुराता रहा, मेरी निगाहें परेशां होकर अन्दर की तरफ इधर-उधर झाँकने लगीं… आप समझ ही गए होंगे कि ऐसा क्यूँ हो रहा था… लेकिन मेरे मन की हालत आप नहीं समझ सकेंगे।
‘नहीं भैया जी… पहले ही बहुत देर हो चुकी है बारिश की वजह से, और सुबह जल्दी से ऑफिस भी जाना है।’ मैंने शालीनता से अरविन्द जी को जवाब दिया और कार की चाभियाँ उनकी तरफ बढ़ा दीं।
‘थोड़ी देर के लिए अन्दर आ जायेंगे तो कोई आफत नहीं आ जाएगी समीर बाबू !!’ अचानक से वो आवाज़ आई जिसे सुनने को मेरे कान तरस रहे थे।
रेणुका जी उसी मैरून रंग के नाईट गाउन में अपने बालों को जूड़ा बनाती हुई अपने कमरे से निकल कर हमारी तरफ बढ़ती हुई मुस्कुरा रही थीं।
उनके चेहरे पे अब भी वही मुस्कराहट थी जो हमेशा से मैंने देखी थी जब वो शरारत के मूड में होती थीं। उनकी इस मुस्कराहट मुझे बहुत खुश कर दिया करती थी लेकिन आज मुझे बेचैन कर रही थी, उनकी मुस्कराहट का मतलब साफ़ था कि वो बहुत खुश थी और उन्होंने अभी अभी प्रेम और वासना के सागर में गोते लगाए होंगे।
यह ख्याल मुझे परेशान किये जा रहा था।
‘हाँ समीर जी रेणुका ठीक ही कह रही है… आप बैठिये, तब तक मैं कार गराज में कर देता हूँ।’ अरविन्द भैया ने रेणुका की बातों में अपनी सहमति जताते हुए कहा और मुझसे कार की चाभियाँ लेकर बाहर निकल गए।
‘हम्म्म्म… अब क्या बताऊँ कि कितना प्यार मिल रहा है… आपको तो पूरी दास्ताँ सुनानी पड़ेगी.’ रेणुका ने शरारत भरे लहजे में कहा और धीरे से एक आँख दबा दी।
‘अच्छा… तो इतना प्यार मिला है कि पूरी दास्ताँ बन गई है? फिर तो फुर्सत में ही सुनूँगा आपकी दास्ताँ!’ मैंने अपनी भौहें सिकोड़ कर रेणुका की तरफ मुस्कुराते हुए कहा और उसके पास से हट कर वहीं पड़े सोफे पर बैठ गया।
रेणुका मुस्कुराती हुई मुड़कर किचन की ओर चली गई और जाते जाते एक बार फिर मेरे दिल की धड़कन बढ़ा गई, उसके भारी नितम्ब जो कि शत प्रतिशत अन्दर से निर्वस्त्र थे, रेशमी गाउन से चिपक कर हिलते-डुलते हुए मुझे चिढ़ा कर ओझल हो गए।
मैं यूँ ही अकेला सोफे पे बैठा इधर उधर देख रहा था और सभी के आने का इंतज़ार कर रहा था ताकि जो भी कॉफ़ी-चाय पीनी हो जल्दी से पियें और मैं अपने कमरे पे जाकर सो सकूँ।
वंदना ने बड़ा ही खूबसूरत सा नाईट ड्रेस पहना था जिसमें एक ही तरह के खूबसूरत प्रिंट वाले फूलों से सजे हुए टी-शर्ट थी और लोअर था।
मैंने एक नज़र उसकी तरफ देखा और मुस्कुरा दिया, उसने भी मुस्कुरा कर देखा और फिर शर्म से अपनी नज़रें झुका लीं।
थोड़ी ही देर के बाद रेणुका जी हाथों में ट्रे लेकर आईं और सबने अपने अपने हिस्से की कॉफ़ी ले ली।
लगभग 10 मिनट तक इधर उधर की बातें हुईं और फिर मैंने सबको गुड नाईट कहकर विदाई ली।
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