जैसे ही आंटी ने बाथरूम का दरवाजा बंद किया, वैसे ही मैं दरवाजे की तरफ भागी पर अंकल ने दुगनी तेजी से मुझे दरवाजे तक पहुँचने के पहले ही पकड़ लिया.
दरवाजा बंद करते हुए मुझे पीछे से पकड़ा, अंकल मेरी गर्दन पर पीछे से किस करने लगे और अपना लंड मेरे कूल्हों पर घिसने लगे. मैं छूटने की कोशिश कर रही थी, पर अंकल की ताकत का मुकाबला नहीं कर सकी. उन्होंने मुझे एक हाथ से जकड़ लिया और दूसरा हाथ स्कर्ट के अन्दर डाल कर मेरी चुत को पैंटी के अन्दर से सहलाने लगे. उनकी उंगलियां मेरी चुत के ऊपर के घुंघराले बालों में घूमने लगीं.
अंकल के हाथ के स्पर्श से ही मेरी बेशर्म चुत पानी छोड़ने लगी. अंकल की उंगलियां किसी एक्सपर्ट की तरह चुत के होंठों को ढूंढ रही थीं, चुत की दरार पर उंगलियां घूमते हुए उसका गीलापन बढ़ा रही थी. बीच बीच में उनकी उंगलियां चुत के दाने को छूतीं और पूरे बदन में करंट दौड़ पड़ता.
मेरे छूटने की कोशिश में गलती से मेरा हाथ उनके लुंगी पर आ गया और मैं शॉक हो गयी. उनका लंड खड़ा होकर डोल रहा था.
न जाने कैसे अपने आप ही मेरी उंगलियों की पकड़ उस विशाल लंड के इर्द गिर्द पड़ गयी. अंकल को शायद ये अहसास हो गया था कि अब मैं भागूंगी नहीं.
अब अंकल ने अपनी पकड़ ढीली कर दी, मुझे उनकी तरफ घूमते हुए उन्होंने अपने हाथ मेरी कूल्हों पर रखे और मुझे अपनी तरफ खींचा. मैं लगभग उनके कंधे की हाइट की थी. उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर फिर से अपने लंड पर रखा. उनका लंड काफी गर्म था और उत्तेजना में झटके मार रहा था. शर्म से लाल हुआ मेरा चेहरा उनके चेहरे के बिल्कुल सामने था.
अंकल ने अपना हाथ मेरी ठोड़ी पर रखकर मेरा चेहरा ऊपर किया, उनकी आंखें वासना से लाल हो गयी थीं. मैं उनकी आंखों से आंखें नहीं मिला सकी और अपनी आंखें बंद कर कर उनके लंड को अपने आप ही हिलाने लगी.
अंकल ने अपना अंगूठा मेरे नाजुक होंठों पर घुमाया. उनके उस मर्दाने स्पर्श से मेरा अपने होंठों पर से कंट्रोल छूट गया और मैं पागलों की तरह उनका अंगूठा चूमने, चूसने लगी. अंकल ने अपना अंगूठा कुछ देर वैसे ही रखा, फिर अचानक से उसे पीछे खींच लिया और अपने होंठों को मेरे होंठों पर रख दिया.
मेरी जिंदगी का पहला चुम्बन, जिसे मैंने सिर्फ किताबों में देखा या पढ़ा था और एक बार अंकल को ही आंटी को करते हुए देखा था.
अंकल मेरे होंठ चूसने लगे, जैसे मानो मेरे शरीर के अन्दर की सारी ऊर्जा होंठों से चूस रहे हों. मेरे पैरों की सारी शक्ति ही चली गई. कहीं गिर ना जाऊं, इसलिए मैंने अपनी बांहें अंकल के गले में डाली और उन्हें कस कर पकड़ लिया.
अब अंकल को मुझे उनके हाथों से पकड़ने की जरूरत नहीं थी, उन्होंने एक हाथ मेरे कूल्हों पर रखा और दूसरा हाथ मेरे स्तनों पर ले आये.
थोड़ी देर मेरे स्तनों को मसलने के बाद उन्होंने मेरी शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए, तो मैं वापिस होश में आ गयी, मैंने उन्हें बड़ी मुश्किल से दूर धकेला- अर्र … अंकल, रुको … आंटी आ गयी तो?
आंटी को अन्दर गए बहुत वक्त हो गया था और वह कभी भी बाहर आ सकती थीं. अंकल जरा से नाराज हो कर पीछे हट गए.
मैंने शर्ट को ठीक किया और जाने लगी तो अंकल ने वापस मुझे पीछे से पकड़ा- नीतू … एक बार फिर से पास आओ ना.
मैंने मुस्कुराते हुए उनके गाल पर एक किस किया, तो उन्होंने भी मेरे गाल पर किस किया और एक हाथ स्कर्ट के अन्दर डाल कर मेरी चुत को पैंटी के अन्दर से सहला दिया.
“अगली बार इसे ठीक से देखता हूँ.” ये बोल कर अपनी एक उंगली मेरी गीली चुत के अन्दर बाहर करने लगे. मैं जोर लगाकर उनकी पकड़ से आजाद हुई और दरवाजा खोल कर बाहर भागी, पीछे मुड़कर देखा तो अंकल उस उंगली को मुँह में डाल कर चाट रहे थे. मैं शर्म से पानी पानी हो गयी और भाग कर घर पहुंच गयी.
घर के अन्दर आ गयी थी, फिर भी मेरी धड़कन शांत होने का नाम नहीं ले रही थी. निप्पल खड़े हो गए थे, चुत बह रही थी. होंठ सूख गए थे, जांघें और चुत आग उगल रही थी. नितम्बों पर अभी भी उनके हाथ का अहसास हो रहा था. मैं झट से बाथरूम गयी और स्कर्ट पैंटी उतारकर चुत को मसलने लगी, चुत की दरार में उंगली अन्दर बाहर करने लगी. दो बार अपनी चूत का पानी निकालने बाद ही मुझे चैन मिला.
उस वक्त मेरी आग जरूर शांत हो गई थी, पर मेरी वासना मुझे शांत बैठने नहीं दे रही थी. एक तो ये प्यासी जवानी और उस पर अंकल ने बदन में लगाई हुई आग, मुझे व्याकुल कर रही थी.
कभी कभी मन में एक अपराधी सी भावना पैदा होने लगती, एक बार लगता के मैं यह ना करूं … अंकल शादी शुदा हैं … आंटी को कैसा लगेगा … मम्मी पापा क्या सोचेंगे … पर जब भी फ़िल्म देखते वक्त हीरो हेरोइन को गले लगाने का सीन आता, तब हीरो के रूप में मुझे अंकल दिखाई देते और हीरोइन में मैं खुद को महसूस करने लगती.
सुबह नहाते समय और शाम को एक बार चुत में उंगली किए बिना चैन ही नहीं मिलता. मैं क्या करूँ मुझे समझ नहीं आ रहा था इसलिए मैं उनसे सामने जाने से कतरा रही थी. आंटी के घर भी तभी जाती, जब अंकल घर पर ना हों.
पर मैं कितने दिन छुप सकती थी. एक दिन शाम को मम्मी ने मुझे बाजार से कुछ सामान लाने को बोला, मुझे वापिस आने तक रात हो गयी. हमारी पार्किंग की लाइट खराब थी, मैंने गाड़ी पार्क की और घर के तरफ जाने लगी.
तभी मुझे किसी ने पीछे से पकड़ लिया. मैं चिल्लाती, तब तक किसी ने अपना हाथ मेरे मुँह के ऊपर रख कर मेरी आवाज दबा दी.
“श … नीतू … चिल्लाना मत … मैं हूँ.” मैं अंकल का आवाज पहचान गयी और पीछे मुड़ी.
“अंकल आप … कितना डर गई मैं … भला ऐसा कोई मजाक करता है?”
अंकल मुझे खींच कर एक कोने में ले गए और मेरे चुचे मसलने लगे, नसीब से वहां पर कोई सिक्योरिटी गार्ड नहीं था. मैं डर के मारे उनका विरोध कर रही थी, पर अंकल जोश में थे. अंकल ने मेरी शर्ट ऊपर सरका दी और मेरे स्तनों को ब्रा के ऊपर से ही चूसने लगे. मैं स्तन चुसाई के मखमली अहसास और पकड़े जाने के डर के अहसास के बीच जूझ रही थी.
“आह … अंकल … मत करो ना … कोई आ जाएगा..”
शायद अंकल की भी इस बात का अहसास हो गया, उन्होंने मुझे छोड़ दिया और दूर हो कर मुझे देखने लगे. मैंने मेरा शर्ट को नीचे किया और स्तनों को शर्ट के ऊपर से सहलाते हुए बोली- आह … दर्द हो रहा है … कितने जंगली हो आप.
मेरा नकली गुस्सा देखकर अंकल फिर जोश में आ गए, मुझे बांहों में भर कर मुझे डीप किस करते हुए मुझसे बोले- मैं इस शुक्रवार ऑफिस से जल्दी वापिस आ जाऊंगा, घर में भी कोई नहीं रहेगा. तुम भी कॉलेज से जल्दी वापिस आ जाना, दोपहर को बहुत मस्ती करेंगे.
“पर मम्मी घर पर रहेंगी ना?”
मैंने तो जैसे उनके प्लान को अपनी सम्मति ही दे दी थी.
“तुम उसकी चिंता मत करो, तुम बस जल्दी घर आ जाना..”
शायद अंकल ने सब प्लान कर रखा था. सब कुछ अच्छे से जम गया था. शुक्रवार को सुबह ही पापा भी कुछ काम से गांव जाने वाले थे, मैं अंकल को हां बोलकर वहां से घर की ओर भाग गयी.
अब आगे शुक्रवार का मुझे बेसब्री से इन्तजार था, जब मेरी कमसिन चूत को अंकल का फौलादी लौड़ा फाड़ने वाला था.
शुक्रवार का दिन आ गया, सुबह पापा को स्टेशन छोड़ कर मैं कॉलेज चली गई और दोपहर को एक बजे घर वापिस लौटी. छोटा भाई स्कूल गया था और वो छह बजे लौटने वाला था, मम्मी भी बाहर जाने के लिए तैयार हो रही थीं.
मैंने पूछा- मम्मी … किधर जाने की तैयारी हो रही है?
‘मैं तुम्हारी पड़ोस की आंटी के साथ शॉपिंग और उसके बाद तीन बजे की फ़िल्म देखने जा रही हूं, बहुत अच्छी फैमिली फ़िल्म आयी है, तुम्हारे अंकल ने ही टिकट निकाल कर दी है पर तुम कैसे जल्दी घर पर आ गईं?
मैं मम्मी से ये सब सुनकर समझ गई कि ये अंकल की चाल थी, एक ही तीर में दो निशाने साधे थे. मतलब फिल्म के टिकट में उन्होंने दो शिकार किए थे. एक तरफ आंटी को खुश कर दिया था और दूसरी तरफ मुझे चोदने का प्लान बना लिया था.
आज होने वाली चुदाई की सोच कर मेरे मन में लड्डू फूट रहे थे. भाई मम्मी और आंटी छह बजे तक घर नहीं आएंगे और पापा तो गांव चले गए हैं. अब छह बजे तक सिर्फ मैं और अंकल.. बाकी पूरा मैदान साफ था.
मैंने मम्मी को बोला- मेरा पेट दर्द कर रहा है, मुझे थोड़ा आराम करना है.
मम्मी आंटी के साथ बाहर चली गईं. आंटी ने दरवाजा लॉक किया. इससे मैंने अंदाजा लगाया कि अंकल अब तक घर नहीं लौटे.
क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा था, मैं फ्रेश हो गयी, हल्का मेकअप किया और घर में पहनने के कपड़े, शर्ट और स्कर्ट पहनकर उनकी राह देखने लगी.
थोड़ी देर बाद अंकल के घर के पास कुछ हलचल सुनाई दी, खिड़की से देखा तो अंकल दरवाजे के लॉक खोल रहे थे. मन में बहुत उथल-पुथल हो रही थी, क्या करूँ अभी चली जाऊं? या फिर उनके बुलाने का इंतजार करूं? किसी ने देख लिया तो?.. दिमाग के अन्दर तूफान आ गया था. चुत की खुजली शांत बैठने नहीं दे रही थी और स्त्री शर्म पहल करने नहीं दे रही थी.
आखिरकार वासना की जीत हुई और मैंने मेरे घर का दरवाजा खोला, बाहर कोई नहीं देख कर खुशी से मैंने अपने घर का दरवाजा लॉक किया और अंकल के घर की तरफ भागी.
अंकल के घर के सामने खड़ी होकर मैंने डोर बेल बजायी …
कहानी जारी है.