मैं गांव के छोटे स्कूल में ही पढ़ी थी, ज्यादा लड़कों से बातें नहीं करती थी. सिर्फ स्कूल और घर … बस मेरी इतनी ही जिंदगी थी. मेरी सहेलियां भी काफी कम थीं. मैं घर में अपना पुरानी स्कूल की यूनिफार्म पहनती थी.
इस बार पापा के ट्रांसफर ने मेरी जिंदगी काफी हद तक बदल दी. शहर में हमारा घर शहर के बाहर एक कॉलोनी में था. आस पास किसी से बातें करने जाओ, तो सब के दरवाजे बंद रहते थे. मेरा कॉलेज भी बहुत दूर था, आने जाने मैं ही बहुत टाइम निकल जाता था.
कॉलेज में मैं सलवार सूट पहनती थी, जीन्स पहनने की हिम्मत नहीं हुई. कॉलेज में चलते वक्त या फिर क्लास में लड़कों की और कुछ प्रोफेसर की नजर मेरे छाती पर या फिर नितम्बों पर टिकी रहती थी. पर मेरे शर्मीले स्वभाव की वजह से कोई आगे नहीं बढ़ता था. मैं घर में बोर हो जाती, माँ से भी कितनी बातें करती, छोटा भाई भी अपने खेल कूद और स्टडी में बिजी रहता.
एक दिन हमारे सामने वाले घर में एक खुराना फैमिली रहने आयी, अंकल लगभग चालीस साल के थे. वे एक कंपनी में काम करते थे और आंटी मम्मी की तरह हाउसवाइफ थीं. इसलिए दोनों की पहले दिन से ही जमने लगी. हमारे दोनों घरों की चाबियां भी हमने आपस में एक्सचेंज कर ली थीं. ताकि वक्त बेवक्त घर के किसी भी सदस्य को चाभी की दिक्कत न हो.
अंकल आंटी के बच्चे अपनी नाना नानी के साथ रहते थे और कभी कभार ही शहर आते थे. अंकल के वापस घर आने तक आंटी हमारे घर में ही रुकती थीं. धीरे धीरे मैं भी उन दोनों मैं शामिल हो गई. अंकल से ज्यादा बात नहीं होती थी, वो अक्सर लेट घर आते या फिर घर में ही रहते.
अंकल का सांवला रंग, चौड़ा बदन, पतले हुए बाल और गुस्सैल चेहरा होने की वजह से कोई उनसे ज्यादा बात नहीं करता था.
अंकल के घर में होने पर मैं उनके घर कम ही जाया करती. मैं जब भी सामने होती, तो उनकी नजरें स्कर्ट के नीचे से मेरी जांघें देखतीं या फिर मेरे सीने को निहारतीं.
धीरे धीरे मैगज़ीन और टीवी आदि की वजह से मेरा सेक्स का ज्ञान बढ़ने लगा, कॉलेज में सहेलियां भी कुछ ना कुछ बोलती ही रहती थीं. कुछ कुछ के तो ब्वॉयफ़्रेंड भी थे. उनकी चुदाई की बातें सुनकर मेरी सांसें तेज होने लगती थीं, गला सूख जाता था और कभी कभी तो चुत भी गीली हो जाती थी.
एक दिन मैं दोपहर को कॉलेज से जल्दी वापिस आ गयी, मम्मी और भाई दोनों घर में नहीं थे. मुझे बोरियत होने लगी तो मैंने आंटी के घर जाने की सोची.
मैं उनके घर के पास गई, तो उनका बाहर का दरवाजा सिर्फ धकेल कर बंद किया हुआ था, मतलब खुला था. मैं दरवाजा खोल कर अन्दर गयी, तो मुझे आंटी हॉल और किचन में भी नहीं दिखीं.
मैं उनको आवाज लगाने को हुई, उसी समय मुझे उनके बेडरूम से ‘अउम्म … अहह … ‘ की आवाजें आ रही थीं.
शायद आंटी की तबियत खराब है, यह सोचकर मैंने उनके बेडरूम में जाने की सोची. उनके बेडरूम का दरवाजा भी लॉक नहीं था और थोड़ा सा खुला ही था. मैंने अन्दर झांककर देखा, तो मुझे एकदम से झटका सा लगा.
अंकल और आंटी पूरे नंगे एक दूसरे के ऊपर लेटे हुए थे. अंकल ऊपर से आंटी के स्तन दबा रहे थे और बीच बीच में आंटी के होंठों पर अपने होंठ रखकर उन्हें चूम रहे थे. आंटी ने भी अंकल को कस कर पकड़ा हुआ था और नीचे से अपनी कमर उठाकर धक्के लगा रही थीं.
मुझे ये सब देखने में मन लगने लगा. मैं दम साधे चुपचाप खड़ी देखती रही. मेरी चूत में चींटियां रेंगने लगी थीं.
थोड़ी देर की चुदाई के बाद ही आंटी चिल्लाने लगीं- आह … बस … मेरा हो गया … और कितनी देर करोगे … बस रहने दो … थक गई मैं … बाहर निकालो … मेरी कमर दर्द करने लगी है.
इस पर अंकल ग़ुस्से से बोले- हो गई तुम शुरू … रोमांटिक होकर कुछ भी करूं, तो शुरू हो गए तुम्हारे नखरे … चुप रहो … मुझे पूरा कर लेने दो.
यह कह कर अंकल ने ऊपर से धक्के देना और तेज कर दिए और आंटी के बड़े स्तन चूसने लगे.
“आह … मर गई … कल रात ही तो किया था यार … अब बाहर भी निकालो … जलन हो रही है.” आंटी चिल्ला रही थीं.
अंकल चिल्लपौं की परवाह किए बिना आंटी को दनादन चोद रहे थे, उनके धक्कों से पूरा पलंग हिल रहा था. अंकल किसी छोटे बच्चे की तरह आंटी के दोनों बूब्स चूस रहे थे.
ये खेल लगभग पांच दस मिनट तक चला.
आंटी फिर से चिल्लाने लगीं- अहह … बस मेरा फिर से हो गया … अब बाहर निकालो … मैं लंड चूस कर खाली कर दूंगी.
इस बार अंकल को उन पर दया आ गयी और दो चार तेज धक्के लगाकर उन्होंने अपना लंड बाहर निकाला.
“आआअह … ” आंटी चिल्लाईं.
अंकल उठ कर खड़े हो गए और मेरी नजर उनके खड़े लंड को देख कर सांस लगभग अटक ही गयी.
अंकल का लंड उनके जांघों के बीच तन कर खड़ा था. अंकल का लंड लगभग मेरी कलाई जितना मोटा था. काले घने बालों के बीच तना हुआ उनका काला लंड बहुत डरावना लग रहा था. चलते हुए उनका लंड इधर उधर झूम रहा था. उसे देख कर मेरे मुँह से हल्की सी सिसकारी निकल गई. शांत वातावरण मैं वो हल्की चीख भी अन्दर सुनाई दे गई.
अंकल ने दरवाजे की तरफ देख कर पूछा- कौन है वहां?
मैं सदमे में वहीं खड़ी रह गई. तभी अंकल ने चतुराई से आगे बढ़ कर दरवाजा खोला. हम दोनों में से कौन ज्यादा शरमाया होगा, पता नहीं पर अंकल झट से दरवाजे के पीछे छुप गए.
अंकल ने पूछा- क..क..क्या चाहिए?
अंकल डर से और उससे भी ज्यादा शर्म से कांप रहे थे.
“क..क..कुछ नहीं … मैं … आंटी … कुछ नहीं..” इतना बोलकर मैं वहां पर से भाग गई.
घर आकर मैं सोफे पर बैठ गयी, फिर भी मेरी सांसें तेज ही चल रही थीं. मुझे बार बार अंकल का लंड, उनके सीने पर के बाल और आंटी का चिल्लाना याद आ रहा था. बदन मैं अजीब सी सुरसुरी हो रही थी और पहली बार चुत से कुछ बह रहा है, ऐसा अहसास हो रहा था. मुझे लगा कहीं पीरियड्स तो नहीं शुरू हो गए? यह सोच कर बाथरूम में जाकर चैक किया … पर ऐसा कुछ नहीं था, बस पैंटी पर एक चिकना दाग बन गया था. वो क्या था, उस वक्त मुझे समझ में नहीं आया.
दूसरे दिन जब मैं और मम्मी उनके घर गईं, तो आंटी बहुत शांत शांत सी थीं. कुछ देर बातचीत हुई, पर आज आंटी ज्यादा नहीं बोल रही थीं.
कुछ देर बाद मेरे पापा के आने के बाद मम्मी घर चली गईं. मैं वहीं पर टीवी देखते हुए बैठ गयी. अब आंटी ने बात शुरू कर दी.
“क्यों री नीतू … शैतान … जरा मैटिनी शो करने का मन हुआ, तो बीच में आ गयी.”
मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था मैंने पूछा- मैटिनी शो? क्या बोल रही हो आंटी?”
आंटी शर्माते हुए बोलीं- अब तुम्हें कैसे बताऊं … कल को तुमने जो देखा … वो!
“ईशश … मैं … मतलब … गलती से हुआ … फिर कभी नहीं नहीं होगा”
तभी दरवाजे पर कोई आया, आंटी उनके साथ दरवाजे पर जाकर बातें करने लगीं. मुझे बोर महसूस होने लगा, तो मैं इधर उधर देखने लगी. तभी सोफे के गद्दे के नीचे से कुछ दिखा. उत्सुकता वश मैंने उसे बाहर निकाला, तो वो एक नंगी फ़ोटो वाली मैगज़ीन थी. मुझे ऐसी बुक्स पढ़ना बहुत पसंद था, इसलिए मैंने उस मैगज़ीन को अपनी स्कर्ट में छिपा लिया और आंटी घर के अन्दर आने के बाद ‘घर पे कुछ काम है.’ बोल कर वहां से भाग आयी.
रात को सब लोग सोने के बाद मैंने छुपाई हुई मैगज़ीन निकाली और बाथरूम में जाकर पढ़ने लगी. मैं जैसे जैसे पन्ने पलट रही थी, वैसे ही मेरी बेचैनी बढ़ रही थी. उस किताब में विदेशी स्त्री पुरुषों की नंगी तस्वीरें थीं और कुछ हिंदी कथाएं भी थीं. उन्हें पढ़ते ही मेरे स्तन फूलने लगे थे और निपल्स भी खड़े हो गए. चुत में मीठी खुजली पैदा होने लगी थी. अंकल का उस दिन देखे लंड की तस्वीर नजरों के सामने आने लगी.
तस्वीर में स्त्री पुरुष जो कर रहे थे, वो मैं और अंकल … मैं मन ही मन ऐसा सोच कर शर्मा गई, पर चुत की खुजली शांत नहीं बैठने दे रही थी. मैं स्टूल पर बैठ कर अपनी उंगली चुत के अन्दर बाहर करने लगी और थोड़ी देर बाद चुत से एक साथ जाती हुई मेरी उंगलियां और पैंटी गीली हो गईं. मुझे थोड़ा आराम मिला और मैं चुपचाप वहां से निकल कर बेड पर सो गई.
अब मेरा अंकल की तरफ देखने का दृष्टिकोण बदल गया, घर में अंकल बनियान और लुंगी पहनते थे. उनकी मजबूत बांहें, बालों से भरी चौड़ी छाती मुझे बहुत पसंद आने लगी. पहले मैं उनकी तरफ ज्यादा देखती भी नहीं थी, पर अब उसने नजर मिलाना और उनका मेरे बदन को निहारना, मुझे अच्छा लगने लगा था. मैं उन्हें अपनी जवानी को निहारने का मौका देने लगी थी और मैं भी चुपके से उनके सीने को और लुंगी के आगे वाली जगह को निहारती रहती थी.
मेरी बदली हुई नजर का शायद उन्हें अंदाज हो गया था, आंटी की नजर चुराते हुए वो मेरी टांगों को निहारते रहते थे. जब भी मैं झुकती, तब उनकी नजर मेरी शर्ट के अन्दर से मेरे स्तनों पर जाती.
मैं भी अब उनके लिए मेरी शर्ट के ऊपर के एक-दो बटन खुले रखने लगी थी.
पर ये सब दूर दूर से हो रहा था, मेरे बदन को छूने की उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी, या फिर वो मुझसे ग्रीन सिग्नल मिलने की राह देख रहे थे. पर ऐसा मौका मिलना मुश्किल था. हर बार हमारे साथ आंटी या फिर मम्मी रहती थीं.
मेरी चुत की खुजली अब मुझे शांत बैठने नहीं दे रही थी, तो मैंने ही पहल करने की सोची.
अगले दिन अंकल दरवाजे पर खड़े पेपर पढ़ रहे थे, मैं और आंटी किचन में थे. मैं घर पर जाने लगी, तो दरवाजे पर अंकल खड़े मिले. अगर मैं अंकल को बोलती कि मुझे जाने दो तो वो बाजू हो जाते, पर मेरे अन्दर तो वासना भरी हुई थी. मैं उनकी पीठ पर मेरी छाती रगड़ कर जाने लगी.
कुछ देर के लिए मेरे स्तन उनकी पीठ में गड़ से गए.
अंकल चौंक कर आगे सरक गए. मैंने पीछे मुड़कर उनको एक अच्छी सी स्माइल दी, उनके मुँह पर आश्चयर्जनक भाव देख कर मुझे हंसी आने लगी थी.
मेरी तरफ से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद अंकल का डर खत्म हो गया, वो बिंदास मेरी मचलती हुई जवानी को निहारने लगे. जब भी आंटी पास नहीं होतीं, तब जानबूझ कर मुझसे सटकर चलते, अपनी हाथ से मेरे स्तनों को, गांड को छूने की कोशिश करते. उनकी हकरतों से मेरे निपल्स खड़े हो जाते, नहाते वक्त उनका लंड याद कर के उंगली से चुत का पानी निकालना रोज का ही काम हो गया था. आगे की पहल कौन और कब करेगा इस बात की उत्सुकता दोनों को ही थी.
एक संडे को मम्मी को आंटी के घर टीवी देखने जा रही हूँ, ऐसा बोलकर मैं घर से निकली. संडे के दिन अंकल की छुट्टी रहती है. जब मैं उनके घर गयी, तो वो दोनों सोफे पर बैठकर चाय पी रहे थे. उस दिन मैंने स्कर्ट थोड़ी ऊपर पहनी हुई थी.
घर में आते ही आंटी बोलीं- आओ नीतू … थोड़ा चाय पी लो.
“नहीं आंटी … मैंने अभी अभी घर में पी ली है.”
“तो क्या हुआ … कभी हमारा स्वाद भी लेकर के देखो.”
अंकल की डबल मीनिंग बातें सुनकर मैं शर्माते हुए कुर्सी पर बैठ गई. जैसे ही आंटी किचन में चाय लाने को गईं, वैसे अंकल मेरी तरफ खिसके, मेरी धड़कनें तेज हो गईं. अंकल ने एक नजर किचन में डाली और एक हाथ मेरी जांघों पर रख दिया.
“इस्स … अंकल … आंटी देख लेंगी..” मैं ऊपर ऊपर से विरोध करने लगी, पर अंकल को मेरे मन की बात पता चल गई. उन्होंने बहुत देर तक मेरी जांघों को स्कर्ट के अन्दर हाथ डाल कर मसला.
मैंने शर्म से अपनी जांघों को भींच दिया था, पर उनका मर्दाना स्पर्श मुझे बहुत पसंद आ रहा था.
अब अंकल अपना हाथ मेरे सीने पर ले आये, तो मैं डर गई.
“अह … अंकल … नहीं … आंटी आती ही होंगी.”
अंकल को भी उनके आने की भनक लग गयी और वो पीछे हो गए, मैंने भी अपने कपड़े ठीक किए और हम दोनों कुछ हुआ ही नहीं, इस भाव में बैठ गए. अब दोनों को भी अपनी भावनाओं पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था और उसी पल आंटी ने हमें एक और मौका दिया- नीतू तुम बैठो … मैं नहाकर आती हूँ.”
अंकल टीवी देखने में व्यस्त हैं, ऐसा दर्शा रहे थे, पर मुझे पता था कि वो ये मौका नहीं छोड़ने वाले.
मेरी इस रंगीन चूत चुदाई की कहानी पर आपके मेल का मुझे इन्तजार रहेगा.
कहानी जारी है.