घर आने के बाद पापा ने गाड़ी पार्क कर दी और हम चारों अंदर चले आये. तभी पीछे से हमारी कामवाली घर में दाखिल हुई. उसने माँ से पूछा- मेमसाब, मैं पहले भी आई थी लेकिन घर का ताला लगा हुआ था. माँ बोली- हां आशा, मैं तुझे फोन करके बताना ही भूल गई कि हम लोग मार्केट जा रहे हैं. चल अब तू आ गई है तो सबके लिये चाय ही बना दे। हम लोग तो थक गये हैं. आशा बोली- जी मालकिन, मैं अभी चाय लेकर आती हूं. इतना कहकर आशा रसोई में चली गई. सुमिना और काजल दोनों ही सुमिना के कमरे में चली गईं.अपने कमरे में आने के बाद मैं सीधा बेड पर आकर गिर गया. बार-बार दिमाग में काजल के साथ हुई आज की घटना की कामुक तस्वीरें उभर कर आ रही थीं. उसने कैसे मेरे लंड पर हाथ रखा हुआ था. उसने मेरे लंड को दबा रखा था. उसका हाथ मेरे लंड पर था ... स्स्स ... ऐसा सोचते हुए मैं एक बार फिर से काम वासना के भंवर में फंसता चला गया. लंड सोच-सोच कर तन गया था. मैंने पैंट की तरफ देखा तो मेरे लंड ने मेरी सफेद पैंट पर कामरस का एक बड़ा सा धब्बा बना दिया था. मैंने अपने खड़े हुए लंड को पैंट के ऊपर से ही सहलाना शुरू कर दिया. आज प्यार की जगह वासना ने ले ली थी. बार-बार मन कर रहा था कि काजल के होंठों को चूस लूं. उसके चूचों को दबा दूं.इस तरह के कामुक ख्यालों में डूबा हुआ जब मैं अपने खड़े लंड को पैंट के ऊपर से सहलाने लगा तो पता चला कि लंड ने अंदर ही अंदर फ्रेंची का एक बड़ा हिस्सा गीला कर दिया है. मैंने पैंट को खोल दिया और अंडवियर को देखा तो अंडवियर के बीच वाला पूरा हिस्सा मेरे लंड के कामरस से भीग चुका था.उस दृश्य को देख कर मन में सेक्स करने की प्यास सी उठी और मैंने अपनी पैंट को जांघों से नीचे करते हुए अपने अंडरवियर को भी नीचे खींच दिया. …और यहीं से सब बदल गया