बहन की सहेली की चुदाई- एक भाई की कश्मकश…-3 (Behan Ki Saheli Ki Chudayi- Ek Bhai Ki Kashmkash- Part 3)


पिछले भाग में आपने पढ़ा कि मेरी बहन की सखी काजल के साथ मैं बात करने का मौका तलाश रहा था और वो मौका सुमिना की बदौलत

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मैं और काजल बात कर ही रहे थे कि सुमिना वो गुलाबी टॉप पहन कर बाहर आ गई. सच कहूं तो सुमिना उस टॉप में किसी मॉडल से कम नहीं लग रही थी. मेरी बहन की खूबसूरती सच में किसी की भी नज़र उस पर रोकने में बखूबी सक्षम थी. फिर चाहे वो नज़र किसी लड़की की ही क्यों न हो.

एक बार तो मेरा मन भी सुमिना के उस टॉप में उठे उसके उरोजों को देखकर जैसे वहीं पर ठहरने सा लगा था. मगर सुमिना मेरी बहन थी इसलिए उसके बारे में अपने मन में ऐसे ख्याल लेकर आने की इजाजत मेरा ज़मीर मुझे कतई नहीं दे रहा था. फिर नज़रें तो नज़रें ही होती हैं उन पर रोक लगाना इतना सरल कहां है.

सुमिना उस टॉप में बहुत ही सुंदर लग रही थी. उसके काले चमकीले बाल उस टॉप पर उसकी खूबसूरती में चार चांद लगाने के साथ-साथ कितने ही तारे भी साथ में जोड़ रहे थे. काजल ने सुमिना की तारीफ करते हुए कहा- बहुत सुंदर लग रही हो …
काजल के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर सुमिना खुश हो गई.

काजल को भी वो टॉप काफी भा गया था. इसलिए उसने उसे खरीदने का मन बना लिया. वो अंदर जाकर जल्दी से चेंज करके वापस बाहर आ गयी. इस दौरान मुझे काजल से कुछ और बात करने का मौका नहीं मिल पाया.

फिर हम तीनों बिलिंग काउंटर की तरफ चले गये. वहां जाकर सुमिना ने बिल बनवाया और टॉप लेकर हम मां-पापा का इंतजार करने लगे. कुछ मिनट तक हमने उनके आने का इंतज़ार किया लेकिन वो लोग कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे. फिर हमने सोचा कि तब तक कॉफी शॉप पर चल कर कॉफी ही पी लेते हैं.

हम लोग कॉफी शॉप में चले गये और वहां जाकर मैंने तीन कॉफी ऑर्डर कर दी. हमने टेबल ले ली और काजल मेरी बहन सुमिना के साथ मेरे सामने बैठ गई. वो दोनों कुछ इधर-उधर की बातें करने लगी और मैं अपने फोन में टाइम पास करने लगा.
बीच-बीच में मैं काजल की तरफ देख रहा था. उसे देखकर जी नहीं भर रहा था लेकिन बेशर्म होकर बहन के सामने ताड़ तो नहीं सकता था उसकी सहेली को इसलिए फोन का बहाना बनाया हुआ था.

काजल को भी मैंने कई बार मेरी तरफ देखते हुए पकड़ लिया था. वो जब हंसती थी तो दिल पर जैसे कटार चल जाती थी. उसके मोतियों जैसे सफेद दांतों के ऊपर उसके होंठों पर खिली हंसी देख कर दिल को बड़ा सुकून मिल रहा था. वो भी बीच-बीच में मेरी तरफ देख कर मुस्करा देती थी.

फिर पांच-सात मिनट के बाद सर्विस ब्वॉय कॉफी लेकर आ गया और उसने तीन कॉफी के कप ट्रे के साथ ही हमारे सामने रख दिया.
“कुछ और ऑर्डर करना चाहेंगे सर?” वेटर ने पूछा।

मैंने उन दोनों सहेलियों की तरफ देखा तो उन्होंने ‘ना’ में मुंडी हिला दी.
“नहीं भैया, हमें और कुछ नहीं चाहिए, थैंक्स!” मैंने वेटर से कहा और वो वापस चला गया.

तीनों ने अपने-अपने कॉफी के कप उठा लिये और गर्म-गर्म कॉफी का लुत्फ लेने लगे. तभी माँ का फोन बजने लगा.
मैंने कॉल उठाई तो माँ ने पूछा- तुम लोग कहां पर हो सुधीर?
मैंने कहा- मां, हम तीनों यहीं कॉफी शॉप में बैठे हुए आपका इंतजार कर रहे हैं. इतना सुनने के बाद माँ ने फोन रख दिया.
फिर दोबारा से माँ का फोन आया- सुधीर, हम लोग पार्किंग की तरफ जा रहे हैं. तुम लोग भी आ जाओ, काफी देर हो गई है.
मैंने कहा- ठीक है मां, हम भी बस निकल रहे हैं यहां से।

पार्किंग में आने के बाद पांचों के पांचों गाड़ी में बैठ गये और फिर वही वाली स्थिति बन गई जो आते समय थी. माँ और पापा आगे बैठे हुए थे और काजल हम दोनों भाई-बहनों के बीच में थी.
पार्किंग से गाड़ी निकाली और हम मॉल से बाहर आ गये.

वापस आते हुए काजल की जांघ मेरी जांघ से अब कुछ ज्यादा ही सटी हुई मालूम हो रही थी. मेरे लंड को तनने में देर नहीं लगी. अंदर ही अंदर तूफान सा उठ रहा था क्योंकि लंड एक बार खड़ा हो जाये तो फिर उसको कुछ न कुछ चाहिये होता है. मगर इस वक्त न तो मैं अपने हाथ से ही अपने लंड को सहला सकता था और काजल का हाथ मेरे लंड पर आने की तो दूर-दूर तक कोई उम्मीद नहीं थी. काजल तो शायद ये भी नहीं जानती थी कि उसकी जांघ का स्पर्श मेरी अंतर्वासना को भड़का चुका है.

काफी देर से लंड उछल रहा था इसलिए उसमें दर्द होना शुरू हो गया था. मैंने बहाने से अपने हाथ को नीचे ले जाकर लंड को थोड़ा एडजस्ट करने की कोशिश की तो उसी वक्त काजल की नज़र हल्की सी नीचे की तरफ जाकर मेरी इस हरकत को देख गई.
मैंने झट से हाथ वापस हटा लिया अपने लंड से मगर ससुरा लंड अभी भी यूं का यूं पैंट को उठाये हुए था. अब मुझे शर्मिंदगी सी महसूस होने लगी थी. मगर समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं इसको छिपाने के लिए!

मैंने सुमिना की तरफ देखा तो वो अपने फोन में लगी हुई थी. मैंने भी अपना फोन निकाल कर अपना ध्यान दूसरी तरफ लगाने की कोशिश की ताकि मेरा तना हुआ लंड खुद से ही नीचे बैठने की कोशिश करे. मैं भी फोन निकाल कर मैसेज वगैरह चेक करने लगा. लंड को नीचे बैठाने की मेरी कोशिश मुझे कामयाब होती भी दिखाई दी. चूंकि मेरा दिमाग अब फोन की स्क्रीन पर मैसेज पढ़ने में व्यस्त हो गया था इसलिए शारीरिक गतिविधियों की तरफ इतना ध्यान नहीं जा रहा था.

लंड बैठना शुरू ही हुआ था कि मेरे बेबस लंड पर एक और प्रहार हो गया जिसकी मुझे उम्मीद कतई नहीं थी. काजल ने मेरी जांघ पर अपना हाथ रख लिया था. मेरे हाथ में फोन था. मैंने उसी पोजीशन में फोन की स्क्रीन पर देखने का नाटक करते हुए मैंने आंखों की पुतलियों को नीचे की ओर मोड़ दिया ताकि वो पता लगा सकें कि काजल का हाथ कहां रखा हुआ है.

काजल का हाथ ठीक मेरी जांघ पर रखा हुआ था और उसकी उंगलियां मेरी जांघ पर फैली हुई थीं. उसके गोरे हाथ को जब मेरी नजरों ने देख लिया तो मेरा अधसोया सा लंड टन्न से फिर तनकर उछल पड़ा. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि काजल ये जान-बूझ कर रही है या उसने अनजाने में ही मेरी जांघ पर हाथ रखा हुआ है. मगर जो भी हो उसके हाथ का ऐसी संवेदनशील जगह पर होना मेरे अंदर गजब की वासना भर रहा था.

मैंने काजल की तरफ देखा तो वो सुमिना के फोन में देख रही थी. मैंने सोचा कि शायद हो सकता है कि अनजाने में काजल का हाथ मेरी जांघ पर आ गया हो इसलिए इतनी जल्दी किसी निष्कर्ष पर पहुंचना ठीक नहीं था. मैंने उसका हाथ ऐसे ही रखा रहने दिया. मगर यहां पर मेरे लिए चिंताजनक बात ये थी कि मेरे तने हुए लंड का टोपा काजल की सबसे छोटी उंगली से बस इंच भर की दूरी पर ही रह गया था.

मन में वासना का वेग इतना बढ़ने लगा था कि मन कर रहा था कि जांघ को फैला दूं और काजल के हाथ को रास्ता दे दूं कि वो मेरे खड़े लंड पर आकर उसकी क्षुधा को शांत करने में अपना योगदान दे लेकिन ऐसा करना अभी मुझे एकतरफा फैसला लगा.
अभी मैं इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं था कि काजल के मन में भी कुछ ऐसा ही चल रहा है या ये सब अनजाने में ही हो रहा है.

फिर दो मिनट बाद वो हुआ जिसने अंदर मेरे अंदर काम की ज्वाला एकदम से ही भड़का दी. काजल के हाथ की दो उंगलियां मेरे तने हुए लौड़े पर आकर ठहर गई थीं. मैंने हैरानी से काजल की तरफ तिरछी नजर करके देखा तो उसने अपना दुपट्टा अपने हाथ से ठुड्डी के नीचे इस तरह से दबाया हुआ था कि दुपट्टे ने सुमिना और मेरे बीच में एक दीवार सी बना दी थी और सुमिना की नजर इस तरफ पड़ ही नहीं सकती थी. काजल अभी भी सुमिना के फोन की स्क्रीन में नजरें गड़ाये हुई थी.

मगर उसकी उंगलियों की पोजीशन को देख कर ऐसा लग रहा था कि वो उंगलियां जैसे वह रास्ता खुद ही तय करते वहां तक पहुंची हों. उसकी उंगलियों का स्पर्श पाकर मेरा लंड फुफकारते हुए उछल-उछल कर झटके देने लगा. मगर फिर भी उसकी उंगलियां मेरे लंड पर जमी रहीं. तनाव इतना प्रबल था कि मेरी जांघ न चाहते हुए भी काजल की जांघ को धकेलती हुई थोड़ी सी फैल गई और कोशिश करने लगी कि काजल की उंगलियां मेरे लंड को पूरा का पूरा कवर कर लें.

बहुत ही कामुक अहसास उबल रहा था अंदर ही अंदर. फिर काजल ने धीरे से अपने हाथ को थोड़ा सा और मेरे तने हुए लंड की तरफ सरकाया और फिर उसकी चार उंगलियां मेरे लंड पर आ गईं. अब मुझे यकीन हो चला था कि काजल भी मेरे लंड को पकड़ना चाहती थी इसीलिये वह जानबूझकर मेरे लंड की तरफ अपने हाथ को बढ़ाये जा रही थी.

फिर उसने अपने पूरे हाथ को मेरे लंड पर रख दिया और मुझे जैसे वासना का नशा सा चढ़ने लगा. मेरा लंड झटके पर झटके दे रहा था. बार-बार उछल-उछल कर काजल के हाथ को ये जता रहा था कि उसकी हालत बहुत खराब हो चुकी है. उसको पकड़ कर सहला दे अब कोई. मगर काजल को जैसे मेरे लंड के साथ-साथ मुझे भी तड़पाने में आनंद आ रहा था, इसलिए वो आराम से अपने हाथ को मेरे लंड पर रखे हुए थी.

फिर उसने एक-दो बार मेरे लंड पर अपने हाथ से दबाव बनाते हुए उसको नापने की कोशिश की तो मैं मदहोशी से भर गया. मन कर रहा था अभी काजल को पकड़ कर उसके होंठों को चूस लूं और उसके चूचों को दबा दूं. मगर वो बेदर्दी से मेरे लंड पर अत्याचार किये जा रही थी. मैं बेबस था. न तो काजल के बदन को छू सकता था और न ही अपने लंड को सहला सकता था.

हां, लेकिन एक काम जरूर कर सकता था. मैंने अपने हाथ को भी काजल के हाथ के ऊपर रख दिया. अब काजल के हाथ पर मेरा हाथ रखा हुआ था और काजल का हाथ मेरे लंड पर। दोनों हाथों के दबाव से लंड पगला गया. ऐसा महसूस होने लगा कि लंड झटके मार-मार कर अभी वीर्य निकाल देगा पैंट में!

लेकिन काजल ने मेरे और मेरे लंड पर कुछ रहम खाया और मेरा हाथ उसके हाथ पर रखने के कुछ सेकेण्ड के बाद ही काजल ने अपना हाथ मेरे तने हुए लंड से हटाते हुए अपनी तरफ खींच लिया. मगर उसकी नजरें अभी भी सुमिना की तरफ ही थीं.

फिर कुछ देर के बाद हम घर पहुंच गये. मेरे लंड का काजल ने बुरा हाल कर दिया था. लेकिन उसके चेहरे पर न तो कोई भाव था और न ही ऐसा कोई चिह्न जिससे मैं ये पता लगा सकूं कि उसने ये सब जान-बूझकर किया है. मगर जो भी हुआ उसमें मजा बहुत आया.

शायद सुमिना को पता लगने के डर से वो किसी तरह का रिएक्शन नहीं देना चाह रही होगी. या फिर ये सोच रही होगी कि कहीं मुझे पता न लग जाये कि वो भी उसी आग में जल रही है जो आग आज मैंने अपने भीतर महसूस की।

घर आने के बाद पापा ने गाड़ी पार्क कर दी और हम चारों अंदर चले आये.

तभी पीछे से हमारी कामवाली घर में दाखिल हुई. उसने माँ से पूछा- मेमसाब, मैं पहले भी आई थी लेकिन घर का ताला लगा हुआ था.
माँ बोली- हां आशा, मैं तुझे फोन करके बताना ही भूल गई कि हम लोग मार्केट जा रहे हैं. चल अब तू आ गई है तो सबके लिये चाय ही बना दे। हम लोग तो थक गये हैं.
आशा बोली- जी मालकिन, मैं अभी चाय लेकर आती हूं.

इतना कहकर आशा रसोई में चली गई. सुमिना और काजल दोनों ही सुमिना के कमरे में चली गईं.
कहानी अगले भाग में जारी रहेगी।

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