बहन की सहेली की चुदाई- एक भाई की कश्मकश…-1 (Behan Ki Saheli Ki Chudayi- Ek Bhai Ki Kashmkash- Part 1)

रोज़ की तरह मेरे लिए वो भी एक सामान्य दिन था. कॉलेज से घर आकर मैंने दरवाजे की बेल बजाई. नौकरानी ने दरवाजा खोला और

मगर मेरा ध्यान तो उसके साथ बैठी सादगी की मूरत पर अटक गया था. इससे पहले मैंने उसको अपने घर में अपनी बहन के साथ कभी नहीं देखा था. सिम्पल सा पीले रंग का प्रिंट वाला सूट और उस के नीचे सफेद पजामी पहने हुए बैठी थी. अपने दोनों हाथों की कुहनियों को घुटनों पर टिका कर अपनी ठुड्डी उस पर सेट कर रखी थी. गले में सफेद ज़मीन की पीले फूलों वाली चुन्नी गले में डाले हुए वो मेरी बहन सुमिना के साथ मीठी गुफ्तगू में मशगूल सी अपने में ही खोई हुई थी.

मेरे कदम तो आगे बढ़ रहे थे लेकिन नज़र जैसे उसी चेहरे पर कहीं पीछे ही उलझ गई थी. कमरे तक पहुंचते-पहुंचते उसको ऊपर से नीचे तक देखने में मेरी गर्दन घूमती चली गई. अचानक कमरे के दरवाजे से टकराया तो सहसा ही उन दोनों की वार्तालाप में विघ्न आ गया और दोनों ही मेरी तरफ देखने लगी. जब उसका चेहरा मेरी तरफ घूमा तो उसकी पलकों ने उसकी काली चमकीली आंखों को ऐसे ढक लिया जैसे छुई मुई को छू लिया हो मेरी नज़रों ने। वो नीचे देखने लगी और मैं अपने कमरे में अंदर घुस गया और धीरे से दरवाजा बंद कर लिया.

घर में घुसने से पहले गर्मी और थकान से परेशान था लेकिन उस खूबसूरत चेहरे से टकराकर आंखों के साथ-साथ पूरे बदन को ठंडक मिल गई थी. कंधे पर लटके बैग को बेड पर फेंका और कुछ सोचते हुए शर्ट के बटन खोलने लगा. शर्ट के बटन खोलते हुए मन के अंदर ही अंदर उठने वाली उमंग मंद मुस्कान बन कर मेरे होंठों पर फैल गई थी. पैंट को निकाल कर दरवाजे के पीछे हैंगर पर टांग दिया और तौलिया लेकर उसे कंधे पर डाला और अंडरवियर की इलास्टिक को एडजस्ट करते हुए नंगे पैरों ही बाथरूम में घुस गया. आज शॉवर से गिर रही बूंदों की छुअन गर्म जिस्म पर बाकी दिनों की अपेक्षा ज्यादा ठंडी महसूस हो रही थी.

गीले अंडरवियर को दोनों हाथों से खींच कर घुटने मोड़ते हुए टखनों से निकाल कर एक तरफ डाल दिया. वस्त्रहीन भीगे जिस्म पर हाथ फिराया और फिर दायें हाथ से पकड़ कर लिंग को शॉवर से गिर रहे पानी के धारे के नीचे कर दिया. पूरे बदन में गुदगुदी सी हो रही थी. जिस्म वहीं बाथरूम में कैद था लेकिन मैं और मेरा मन कहीं अपने ही ख्यालों में उड़ रहा था.

साबुन उठाया और दायां हाथ अपने आप ही मेरी हल्के बालों वाली छाती पर चलने लगा. जब थोड़े से झाग बन गये तो बारी-बारी से हाथ उठाकर दोनों बगलों को साबुन से मल कर पसीने के किटाणुओं का गला घोंटते हुए नीचे काले झाटों को भी साबुन लगाकर साफ करने लगा. फिर बड़े ही प्यार से पूरे बदन पर हाथ फिराते हुए शरीर पर बहते पानी को हर अंग पर लगे साबुन तक पहुंचाते हुए खुद को धोने लगा. शावर से गिरता पानी बदन पर लगे साबुन को तो साफ कर रहा था मगर सुमिना के साथ बैठी उस लड़की की मासूमियत का रंग था कि हर पल और गहराता जा रहा था.

सारा साबुन साफ करने के बाद शावर बंद कर दिया और तेजी के साथ तौलिया से बदन को रगड़ने लगा. गीला अंडरवियर फर्श पर ही छोड़कर भीगे हुए नंगे पैरों को ठंडे फर्श पर आहिस्ता से रखते हुए लटकते-झूलते लिंग के साथ बाहर आ गया. अलमारी से एक साफ फ्रेंची निकाली और जांघों से फंसाते हुए लिंग को छिपा लिया. फ्रेंची पर बना लिंग का उभार भी आज बदन में सनसनी पैदा कर रहा था. वासना से नहीं बल्कि किसी और अहसास से जिसको अभी बयां करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं थे.

लोअर डालकर टी-शर्ट पहन लिया और गीले बालों को तौलिया से पौंछते हुए आइने के सामने जाकर झटकने लगा. कंघी उठाकर लम्बे बालों को मांग निकालते हुए व्यवस्थित किया और चप्पलें पहन कर दरवाजे की तरफ बढ़ा. एक उत्सुकता थी मन में उसको दोबारा देखने की. दरवाजा खोल कर बाहर आया तो हॉल में कोई नहीं था.

टेबल पर कॉफी के दो झूठे कप रखे हुए थे. किचन से कुछ आवाज आई तो कदम उस तरफ बढ़े. जाकर देखा तो सुमिना खाना बना रही थी.
“क्या बना रही हो?” पास जाकर मैंने सुमिना से पूछा।
“राजमा-चावल” उसने जवाब दिया.
“ये लड़की कौन बैठी थी तुम्हारे साथ हॉल में?” मैंने सहजता से पूछा।
“काजल… मेरे कॉलेज की दोस्त है। हम दोनों एक ही क्लास में हैं।”

‘ओके’ इससे ज्यादा न तो मैंने कुछ कहा और न ही सुमिना से कुछ और पूछने के लिए मेरे पास अभी था। वो कहते हैं न कि ‘ठंडा करके खाना चाहिए…’ बस उसी नीति का ख्याल आ गया था।

मैं हॉल में जाकर टीवी देखने लगा. एक पुरानी एक्शन फिल्म आ रही थी टीवी पर. लेकिन आज मूड कुछ बदल गया था. कोई लव-स्टोरी देखने का मन था. मन कुछ गुनगुनाना चाहता था जैसे.

दस मिनट बाद सुमिना थाली में गर्म-गर्म राजमा चावल लेकर मेरे साथ वाले सोफे पर आ बैठी.
“आज तो नज़रें डगमगा रही थीं जनाब की …” सुमिना ने एक थाली मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा.
“क्यूं, ऐसा क्यूं लगा तुझे?” मैंने अनजान सा बनने की कोशिश की।
“रहने दे, मैं बहन हूं तुम्हारी! मुझसे ज्यादा बनने की कोशिश करना बेकार है।” सुमिना ने जैसे मेरे मन में उठती प्यार की उमंग की पतंग की डोरी अपने शब्दों के हाथ से वापस अपनी तरफ खींचते हुए कहा।
“ऐसी कोई बात नहीं है, जैसा तू सोच रही है! चुपचाप अपना लंच कर और मुझे मूवी देखने दे.” मैंने बात को टालते हुए कहा।
“मेरी छठी इन्द्री कभी मुझसे झूठ नहीं बोलती, देख लेना … तुम भी यहीं हो और मैं भी!” सुमिना ने अपनी बात की गारंटी भरते हुए जवाब दिया.

दोनों भाई-बहन लंच करते हुए टीवी देखने लगे. लंच करने के बाद शरीर में सुस्ती सी आ गई और मैं अंगड़ाई लेते हुए उठ कर अपने कमरे में जाकर बेड पर गिर गया. थोड़ी ही देर में नींद आ गई. शाम के पांच बजे आंख खुली तो शरीर ताजगी से भर चुका था. अब और लेटने का मन नहीं कर रहा था.

कुछ देर बेड पर पड़ा हुआ फोन में मैसेज चैट चेक करने लगा. दोस्तों-लफंगों से बातें करते हुए दो घंटे कब निकल गये पता नहीं चला.

शाम को पास ही के पार्क में घूमने चला गया. वहाँ पर कॉलोनी वाले बच्चों के साथ थोड़ा ‘क्रिकेट वर्ल्ड कप’ के लिए खेला और फिर आठ बजे घर आया तो अंधेरा हो चुका था. माँ ने डिनर की तैयारी कर ली थी और सुमिना अपने कमरे में शायद पढ़ाई कर रही थी.

साढ़े नौ तक सब लोग खाना खाकर फ्री हो गये. पिता जी और मैं आधे घंटे तक न्यूज चैनल में आंखें गड़ाये रहे और फिर माँ-बेटी को टीवी पर हमारा ये मालिकाना हक बर्दाश्त नहीं हुआ. सुमिना ने मेरे हाथ से रिमोट छीन लिया और सीरियल देखने लगी.

मुझसे तो वो ड्रामा झेला नहीं गया इसलिए उठ कर अपने कमरे में आ गया और बेड पर लेट कर फोन हाथ में उठा लिया. फिर रात के 12 बजे तक चैटिंग का दौर चला और जब धीरे-धीरे सबके रिप्लाई आने बंद हो गये तो मैंने भी मैसेंजर बंद कर दिया.

एक पॉर्न साइट खोलकर देसी इंडियन नंगी लड़कियों की तस्वीरें देखने लगा. देखते-देखते लौड़ा बिना मेरी इजाजत के ही तन गया और लिंग के हुक्म पर हाथ अपने आप ही लोअर की इलास्टिक से जबरदस्ती अंदर घुस कर फ्रेंची के ऊपर से ही अंदर तने हुए, स्पर्श के लिए मचलते, मेरे प्यासे लिंग को सहलाने लगा.

मगर सहलाने भर से काम कहां बनने वाला था. न चाहते हुए भी हाथ अंदर अंडरवियर में घुस गया और लंड के टोपे को पूरा पीछे खींच कर फिर से आगे ढकने की क्रिया को बार-बार दोहराने लगा. बढ़ती हुई वासना के साथ हाथ की स्पीड लिंग पर अपने आप ही बढ़ ही रही थी.

जब भी कोई सेक्सी जवान खूबसूरत सी नंगी लड़की जूम करने के बाद फोन की स्क्रीन पर उभर कर आती थी तो अंदर से दबी हुई सी वासना भरी स्स्स … आह्ह … की सिसकारी निकल जाती थी. कभी नज़र किसी के चूचों के बीच में तने हुए भूरे निप्पलों पर जाती तो कभी किसी प्यारी सी चिकनी चूत पर. मुट्ठ मारने के दौरान उठने वाले वेग में लंड को हाथ का स्पर्श देने का मजा भी कुछ कम नहीं होता। यही हस्तमैथुन का आनंद है!

मेरा हाथ जोश में आ चुके मेरे लिंग की तेजी के साथ मुट्ठ मारने लगा. धीरे-धीरे लिंग को कसने वाले फोर्स के साथ हाथ की पकड़ मेरे तने हुए लौड़े पर बढ़ती जा रही थी. पांच-सात मिनट तक नंगी चूचियों और चूतों को मन ही मन सिसकारियां भरते हुए देखने के बाद आखिरकार मैंने अपने अंडकोषों में हवस की गर्मी से उबल रहे वीर्य पर नियंत्रण खो दिया और मेरे तने हुए लंड ने अपना सारा उबाल वीर्य के रूप में अंडरवियर में ही उड़ेल दिया.

वीर्यकोष खाली करने के बाद शांत होते हुए मैंने फोन एक तरफ डाल दिया और फिर आंखें बंद कर ली. लंड तो शांत हो गया था लेकिन मन को शांति नहीं मिली थी. जब तक जिस्म और मन का आपसी ताल-मेल सही न बैठे और दोनों में से किसी एक को भी अधूरी संतुष्टि से संतोष करना पड़े तो ऐसा लगता है कि जैसे कहीं कुछ रह गया है, जो पूरा होना बाकी है.
मेरे साथ भी ऐसा ही हो रहा था. लंड को तो हिला कर मैंने खुश कर दिया था लेकिन मन में एक अधूरापन सा था. मुझे लग रहा था कि यही क्रिया अगर किसी पार्टनर के साथ होती तो आनंद इससे कहीं ज्यादा और बेहतर संतोष देने वाला होता!

लंड की मुट्ठ मारने के बाद शरीर की उर्जा कम हो गई थी जिससे धीरे-धीरे पलकें भारी होने लगीं. फिर कब मैं सपनों की दुनिया में चला गया इसकी खबर नहीं लगी।

नींद फिर सुबह ही खुली. उठ कर फ्रेश हुआ और नहा-धोकर कॉलेज के लिए निकल गया. कॉलेज में दिन बहुत जल्दी बीत जाता था और कब घर जाने का वक्त नजदीक आ जाता था कभी ध्यान जाता ही नहीं था क्लास में.

पूरा दिन क्लास में मस्ती होती रहती थी. उस दिन भी जब मैं घर लौटा तो फिर से काजल को सामने बैठे हुए देखा. इस तरह धीरे-धीरे काजल का हमारे घर पर आना रोज ही होने लगा. उसका परिणाम ये हुआ कि क्लास में भी मैं अब बार-बार घड़ी की तरफ देखता रहता था. कब लेक्चर खत्म होगा और कब यहां से छुट्टी मिलेगी, यही विचार चलते रहते थे. घर जाने की बेचैनी सी उठनी शुरू हो गई थी आजकल।

घर जल्दी जाने का एक ही कारण था- काजल के हुस्न का दीदार और साथ ही साथ उसको पटाने की चाहत।

अब वो लगभग रोज ही सुमिना के साथ पढ़ाई करने के लिए चली आया करती थी. मेरा मन अब घर में ज्यादा लगने लगा था. यहां तक कि अपने फोन से भी मैंने दूरी बना ली थी. किताबों का तो पता ही नहीं था कि कहां पड़ी हुई हैं.

बार-बार बहाने से काजल को देखने की कोशिश करता रहता था. इधर सुमिना शायद मेरी मंशा को भांप चुकी थी. मगर इस बारे में अभी मैं ज्यादा आश्वस्त नहीं था. मगर बीतते दिनों के साथ अब काजल भी चोरी-चोरी मुझे देखने की कोशिश करती थी लेकिन कभी खुलकर उसने भी मेरी तरफ नहीं देखा. उसकी नज़रें हमेशा नीचे ही झुकी रहती थीं. मगर एक दो-बार मैंने उसको आंखों की गुस्ताखियां करते हुए रंगे हाथ पकड़ लिया था।

हम दोनों के बीच में अब तक न तो कुछ बात हुई थी और न ही दोनों में से किसी एक की तरफ से बात करने की कोई पहल. मगर मेरी बेचैनी हर दिन बढ़ती जा रही थी. जब भी काजल मेरी बहन सुमिना के साथ बैठी होती तो वहीं आस-पास मंडराने लगता था. अब तो रात को मुट्ठ मारने का मन भी नहीं करता था. बस कोशिश यही रहती थी कि किस तरह से काजल के साथ बात करने की शुरूआत करूं. ऐसा कौन सा तरीका निकालूँ कि मैं उसके करीब जा सकूँ.

सुमिना यूं तो काजल के साथ व्यस्त रहती थी लेकिन मैं कोई चान्स नहीं लेना चाहता था अपनी बड़ी बहन के सामने. इसलिए अभी तो सब कुछ चोरी-चोरी चुपके-चुपके ही हो रहा था.

एक दिन जब मैं कॉलेज से आया तो वह दोनों अपनी पढ़ाई में लगी हुई थीं। दरवाजा खुला था इसलिए मेरे आने की आहट न हुई। सुमिना का मुंह दूसरी तरफ था. जबकि काजल ने मुझे मेन गेट से अंदर आते हुए देख लिया था क्योंकि उसका मुंह सामने की तरफ था. घर में दाखिल होते समय उसने मुझे देख लिया था.

मैं धीरे से अपने कमरे की तरफ जा ही रहा था कि एक धीमी सी मगर मीठी आवाज ने मेरे कान खड़े कर दिये.
“सुमिना, सुधीर आ गया है …”

यह काजल की आवाज़ थी क्योंकि सुमिना की आवाज़ को तो मैं अच्छी तरह पहचानता था. उस दिन पहली बार मैंने काजल के मुंह से अपना नाम सुना. अगर वो चाहती तो मुझे भैया कह कर भी संबोधित कर सकती थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. उसने मेरा नाम ही लिया, मगर बहुत धीरे. उसने पूरी कोशिश की कि आवाज मेरे कानों तक न जाये मगर मेरे जिस्म का हर अंग तो जैसे उसी की तरफ ही लगा रहता था.

सुमिना ने मुड़कर देखा तो मैं अपने कमरे में घुस ही रहा था. उस दिन मन में लड्डू से फूट रहे थे. मैं ये तो नहीं जानता था कि काजल की तरफ मेरा ये झुकाव प्यार था या महज आकर्षण के पीछे छिपी हुई वासना! मगर जो भी था, बड़ा ही बेचैन करने वाला अहसास था जो हर दिन प्रबल होता जा रहा था.

अब तो ऐसा लगने लगा था कि काजल को घर में देख लूं तो दिन सफल सा मालूम होता था.

फिर अचानक से काजल ने आना बंद कर दिया. मैं कॉलेज बंक करके रोज़ उसी के लिए घर जल्दी पहुंचता था मगर कई दिन से वो आ ही नहीं रही थी. मन में एक खालीपन सा बनना शुरू हो गया था उसकी गैरमौजूदगी से. बेचैनी बढ़ने लगी थी.

सोच रहा था कि सुमिना से इस बारे में बात करूं मगर सुमिना मेरी बड़ी बहन थी. काजल के लिए मेरा लगाव अभी मेरी नैतिकता पर हावी नहीं हुआ था. नैतिकता कह रही थी कि मैं छोटा हूँ और सुमिना बड़ी। वैसे तो भाई-बहन का रिश्ता अगाढ़ प्रेम का दूसरा रूप होता है मगर वासना जैसे मुद्दे को इस रिश्ते के बीच में लेकर आना मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था क्योंकि प्रेम अपनी जगह है और सेक्स के रुझान को लेकर अपने से बड़ी बहन के साथ डिस्कशन एक अलग ही आयाम का गठन करने के जैसा है.

मैं चाहता तो सुमिना से बहाना बनाकर काजल के बारे में पूछ सकता था लेकिन एक बड़ी बहन और उसके छोटे भाई के बीच मर्यादा की दीवार सी थी जिसको लांघने के लिए अभी आकर्षण के और अधिक प्रबल वेग की आवश्यकता थी.

कहानी अगले भाग में जारी रहेगी.


Anamika Shetty

11 News & Blogs posts

Comments