अवधेश रिंकू मेरे दोस्त ने एक फ़ोन नंबर दिया और कहा- इस लड़की से बात करो। मैं उससे बात करने लगा और तीन महीने बीत गए, मेरे दोस्त ने बोला- तू इसे प्रपोज कर देना। तो मैंने ऐसा ही किया पर उस लड़की ने मना कर दिया। मगर उससे पहले मेरी बात उसी की सहेली से उसी के फ़ोन से हुई, वो लड़की बहुत सख्त स्वाभाव की थी। वो बोली- तुम्हें कोई काम नहीं है बस लड़कियों के पीछे भागते हो। मुझे लगा कि वो मेरी हँसी उड़ा रही है और मुझे परेशान कर रही है। मैंने कहा- फोन पर बात करने का मतलब पीछे भागना नहीं होता और हम लोग दोस्त हैं। इसलिए बात करते हैं तुमसे कोई बात करता नहीं होगा इसलिए तुम हमारी बातचीत से जलती हो। उसके दिल को यह बात चुभ गई उसने कहा- तुम कितनी देर तक बात कर सकते हो? मैंने कहा- तुम्हारे फ़ोन की बैटरी ख़त्म हो जाएगी पर मेरा बैलेंस ख़त्म नहीं होगा। तो उसने भी मजा लिया और अपनी सहेली से भी कह दिया- इस लड़के को और परेशान कर और देख कि इसके पास कितना बैलेंस है।’ तो वो मुझसे बात करने लगी। ऐसे कई दिन बीत गए वो लड़की मुझसे बात तो करती थी मगर वो अन्दर से दुखी रहती थी। मैंने जब पूछा, तो उसने कहा- मेरी बहन की डेथ हो गई है इसलिए दुखी हूँ। तो मैं उससे प्यार से बात करने लगा और हँसाने की कोशिश करता था। वो मेरी बातों से हँसने भी लगती थी। अगस्त से अक्टूबर तक हमारी बात हुई और उसके बाद मैं दीपावली पर अपने घर गया। उसका घर मेरे घर से तीस किलोमीटर दूर था, तो मैंने उसे बुला लिया और हम लोग थिएटर में मूवी देखने गए। करीब आधा घंटा हो गया, मुझे डर लग रहा था कि अगर मैंने कुछ किया तो ये नाराज़ हो जाएगी और चली जाएगी, मगर हिम्मत करके मैंने उसके गालों पर एक चुम्बन कर लिया। उसने एकदम से मुझे हटा दिया पर कुछ कहा नहीं, थोड़ी देर बाद मैंने उसके होंठों को चूमा और पूरे जोश के साथ करता ही रहा। वो काफी विरोध करती रही, मगर थोड़ी देर बाद मान गई और कुछ नहीं बोली। मेरी हिम्मत और बढ़ गई, फिर मैंने उसकी सलवार में हाथ डाल दिया और देखा कि वो काफी गर्म हो चुकी थी। उसकी चूत में काफी पानी आ गया था। अचानक वो उठ गई और चलने लगी, मैंने हाथ पकड़ लिया और कहा- अब कुछ नहीं करूँगा। तो वो बैठ गई और फिर पूरी फिल्म देखी। तो मैंने कह दिया- ठीक है.. अब कभी भी नहीं मिलूँगा। तो वो मान गई। अगले दिन मैंने प्लान बना लिया कि चोदना जरूर है तो मैंने हॉस्टल की चाभी ली, क्योंकि मैं उस हॉस्टल में रहा था और सीनियर था तो किसी की हिम्मत नहीं थी जो कुछ कोई कहता और वार्डेन से भी मेरी पहचान थी तो मैं उसको बहाने से अपनी बाईक पर ले आया और हम कमरा खोल कर बैठ गए। थोड़ी देर बाद मैंने दरवाजा बन्द कर दिया तो वो बोली- ये सिटकनी क्यूँ लगा दी? तो मैंने कहा- कोई आ न जाए और हमें देख न ले। तो वो बोली- क्या देख लेगा? फिर भी तो वो चुप हो गई और मैंने उसे बाँहों में भर लिया और वो कसमसाने लगी। फिर मैंने उसे लिटा दिया और उसके दूध पकड़े और जोर से दबा दिए। वो चिल्ला उठी- उई.. पर मैं अब कोई परवाह न करते हुए उसके ऊपर चढ़ गया और उसे चूमने लगा। वो भी हल्के विरोध के साथ सब करवाती रही और मैंने उसकी सलवार में ऊँगली डाल करके आगे-पीछे करने लगा और देखा कि लौंडिया बहुत काफी गर्म हो गई है तो मैंने उसके सब कपड़े उतार दिए। अब मैंने उसकी चूत का मुआयना किया तो एकदम लाल थी, मैंने पहली बार चूत देखी थी। वो सिसकारियाँ भर रही थी, मैंने थोड़ा सा झटका दिया तो वो उछल गई और कहने लगी- दर्द हो रहा है..! मैंने कहा- थोड़ा सा होगा। मैंने कस कर पकड़ लिया और जोर का झटका दिया मगर लंड फिसल गया। मगर तीन-चार बार कोशिश की और मैंने उसके कन्धों को कस के पकड़ लिया, क्योंकि मैं जानता था कि वो फिर उछल जाएगी। अब कसके धक्का दिया तो केवल दो या तीन इंच ही अन्दर गया होगा। वो बिलबिला उठी तो मैंने उसके होंठों को अपने होठों से दबा लिया और कुछ देर रुक गया। जब वो कुछ शांत पड़ गई तब एक जोर का झटका फिर से दिया। उसने मुझे दूर हटाने की अपनी पूरी ताकत लगा दी मगर मर्द की ताकत के आगे औरत की ताकत नहीं कि वो जीत जाए, सो पड़ी रही और रोने लगी। मगर करीब दो मिनट के बाद उसे आराम मिल गया। अब मैंने उसकी चूत पर अपना पूरा जोर लगा दिया और लंड उसकी चूत को चीरता हुआ अन्दर जा फंसा। वो बेहोश सी हो गई, फिर मुझे थोड़ा और इंतजार करना पड़ा कि वो थोड़ी सामान्य हो जाए। उसे सामान्य होने में यही कोई 4-5 मिनट लगे होंगे, मैंने नीचे देखा तो चूत खून छोड़ रही थी। मैंने उसे देखने नहीं दिया और अब झटके मारने चालू कर दिए। अब वो बिलकुल सामान्य हो गई थी और आराम से लंड के झटके ले रही थी। पहली बार में वो और मैं जल्दी झड़ गए। मगर थोड़ी देर बाद दुबारा मैंने लंड के झटके बरसाने चालू कर दिए इस बार वो खूब चुदी और करीब 25 मिनट बाद झड़ी, मगर मैंने झटके चालू रखे और वो अब मना करने लगी। मगर मैंने छोड़ा नहीं और दस मिनट तक उस पर बरसा और अलग हुआ तो वो कुछ मिनट तक बिस्तर पर पड़ी रही और फिर उसने अपनी चूत देखी तो वो काफी सूज गई थी और थोड़ा खून भी लगा था। तो वो बोली- मेरी फट गई है। मैंने कहा- नहीं फटी नहीं है… खुल गई है। वो तो रोती ही रही, इसके बाद मैंने उसे चुम्बन किया, मगर उसने साथ नहीं दिया, क्योंकि वो अभी भी शरमा रही थी। फिर मैंने उसे घर छोड़ दिया अब मैं अक्सर उसे चोदता हूँ और अब वो भी मेरा बराबर साथ देती है। मैंने उसे अपने कमरे पर दो बार बुलाया है और एक बार उसने मेरे साथ लगातार पांच रातें गुजारी हैं। उन 5 रातों में हम दोनों चुदाई से मस्त हो चुके थे, मगर अब मैं उससे दो या तीन महीनों में ही मिल पाता हूँ क्योंकि मैं उससे 300 किलोमीटर दूर रहता हूँ और फोन पर उससे बराबर बात होती है।
हैलो दोस्तो, मैं इस कहानी से आपको बताना चाहता हूँ कि जब प्यार किसी से होता है तो वो शक्ल-सूरत से नहीं होता है।
यह उस समय की बात है जब मैं बी. टेक के दूसरे साल में था।
वो लड़की उसकी दूर की रिश्तेदार थी।
वहाँ मैंने ‘अनजाना अनजानी’ मूवी की टिकट ली और अन्दर जाकर सबसे पीछे की सीट पर बैठ गए।
मैंने उंगली डाल दी और वो कराहने लगी, काफी देर तक ऊँगली चलाई और उसने मुझे कस कर जकड़ लिया और गरम-गरम सांसें छोड़ने लगी थी।
फिर मैंने उसे उसके घर छोड़ दिया और अगले दिन मिलने का वादा किया मगर उसने मना कर दिया।
मैंने कहा- मुझे चुम्बन करना है।
उसने कहा- ऐसा कुछ नहीं होगा।
तो मैंने कहा- प्यार करता हूँ यार।
मैंने उसके होंठों पर चुम्मियों की बौछार कर दी, वो थोड़ी देर ही विरोध करती रही फिर पटरी पर आ गई।
मैंने भी अपने कपड़े उतार दिए अब ज्यादा देर न करते हुए मैंने अपने लंड को उसकी चूत पर रखा और रगड़ने लगा।
यह कहानी बिलकुल सच्ची है। आप मुझे मेल कर सकते हैं।
