Lambi Choot Chudai-5 तभी मेरी योनि और नाभि के बीच के हिस्से में उसका लिंग चुभता हुआ महसूस हुआ.. मैंने देखा तो उसका लिंग फिर से कड़ा हो रहा था। उसके लिंग के ऊपर की चमड़ी पूरी तरह से ऊपर चढ़ गई थी और सुपाड़ा खुल कर किसी सेब की तरह दिख रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे सूज गया हो। अमर ने मुझे अपनी बांहों में कसते हुए फिर से चूमना शुरू कर दिया, पर मैंने कहा- प्लीज अब और नहीं हो पाएगा मुझसे.. तुम जाओ। तब उसने कहा- थोड़ी देर मुझे खुद से अलग मत करो.. मुझे अच्छा लग रहा है। इस तरह वो मुझे अपनी बांहों में और कसता गया और चूमता गया। मैं अपनी कमर को उससे दूर करने की कोशिश करने लगी, पर उसने मेरे गले में एक हाथ डाल कर मुझे अपनी और खींच कर होंठों को चूसना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ से मेरे कूल्हों को पकड़ अपनी और खींचा। इससे मेरी योनि उसके लिंग से रगड़ खाने लगी और अमर अपने कमर को नचा कर लिंग को मेरी योनि में रगड़ने लगा। मेरी योनि में जैसे ही उसका मोटा सुपाड़ा लगा, मैं कराह उठी और झट से उसके लिंग को पकड़ कर दूर करने की कोशिश की, तब अमर ने कहा- आराम से… दुखता है। मैंने कहा- जब इतना दर्द है.. तो बस भी करो और जाओ काम पर। तब उसने कहा- बस एक बार और.. अभी तक मेरा दिल नहीं भरा। मैंने कहा- नहीं.. मुझसे अब और नहीं होगा, मैं मर जाऊँगी। देखते ही देखते अमर का लिंग और कड़ा हो गया और वो मेरे ऊपर चढ़ गया और मुझे पागलों की तरह चूमने लगा। मुझमे इतनी ताकत नहीं थी कि मैं उसका साथ दे सकूँ और न ही मेरे जिस्म में हिम्मत थी कि उसका विरोध कर सकूँ। मेरे साथ न देने को देखते हुए वो मुझसे अलग हो मेरे पैरों की तरफ घुटनों के बल खड़ा हो कर खुद ही अपने हाथ से अपने लिंग को हिलाने लगा और उसे तैयार करने लगा। मैं बस उसे देखते हुए उससे बार-बार यही कह रही थी- अब बस भी करो.. मैंने अपनी जांघें आपस में सटा लीं पर मेरा ऐसा करना उसके मन को बदल न सका। उसने मुझसे कहा- बस ये अंतिम बार है और अब मैं चला जाऊँगा। वो मेरी टांगों को अलग करने की कोशिश करने लगा। मैं अपनी बची-खुची सारी ताकत को उसे रोकने में लगा रही थी और विनती कर रही थी ‘छोड़ दे..’ पर ये सब व्यर्थ गया। मैं उसके सामने कमजोर पड़ गई और उसने मेरी टांगों को फैलाया और फिर बीच में आकर मेरे ऊपर झुक गया। मुझे ऐसा लगने लगा कि आज मेरी जान निकल जाएगी, मुझे खुद पर गुस्सा भी आने लगा कि आखिर मैंने इसे क्यों पहले नहीं रोका। पहले दिन ही रोक लिया होता तो आज यह नौबत नहीं आती। मेरी हालत रोने जैसी हो गई थी क्योंकि मुझे अंदाजा था कि क्या होने वाला है, सो अपनी ताकत से उसे धकेल रही थी, पर वो मुझसे ज्यादा ताकतवर था। उसने एक हाथ में थूक लिया और मेरी योनि की छेद पर मल दिया और उसी हाथ से लिंग को पकड़ कर योनि की छेद पर रगड़ने लगा। उसके छुअन से ही मुझे एहसास होने लगा कि मेरी अब क्या हालत होने वाली है। मैं दर्द से कसमसाते हुए कराहने लगी और उसे धकेलने का प्रयास करने लगी, पर अमर ने मुझे कन्धों से पकड़ लिया और धीरे-धीरे अपनी कमर को मेरी योनि में दबाता चला गया। इस तरह उसका लिंग मेरी योनि में घुसता चला गया.. मैं बस कराहती और तड़पती रही। मैं विनती करने लगी- प्लीज मुझे छोड़ दो.. मैं मर जाऊँगी.. बहुत दर्द हो रहा है। पर अमर ने मुझे चूमते हुए कहा- बस थोड़ी देर.. क्या मेरे लिए तुम इतना सा दर्द बर्दास्त नहीं कर सकती? उसने धीरे-धीरे लिंग को अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया। मेरे लिए यह पल बहुत ही असहनीय था, पर मेरे किसी भी तरह के शब्द काम नहीं आ रहे थे। अमर मेरी बातों से जैसे अनजान सा हो गया था और वो धक्के लगाते जा रहे थे और कुछ देर में उनके धक्के तेज़ होने लगे.. जो मेरे लिए किसी श्राप की तरह लगने लगे। मेरा कराहना और तेज़ हो गया और अब मेरे मुँह से निकलने लगा- धीरे करो.. आराम से करो। करीब 30 मिनट हो गए, पर अमर अभी तक धक्के लगा रहा था। मुझे लगा कि जल्दी से झड़ जाए तो मुझे राहत मिले। मैंने कहा- क्या हुआ… जल्दी करो। उसने कहा- कर रहा हूँ.. पर निकल नहीं रहा। मैंने उससे कहा- जब नहीं हो रहा.. तो मैं हाथ से निकाल देती हूँ। उसने कहा- नहीं, बस थोड़ी देर और.. मैंने कहा- तुम मेरी जान ले लोगे क्या.. मैं दर्द से मरी जा रही हूँ, प्लीज छोड़ दो…. मेरी फट जाएगी ऐसा लग रहा है। मैंने उसे फिर से धकेलना शुरू कर दिया। यह देखते हुए उसे मेरे हाथों को अपने हाथों से पकड़ कर बिस्तर पर दोनों तरफ फैला कर दबा दिया और धक्के लगाने लगा। उसके धक्के इतने तेज़ हो चुके थे कि मुझे लगा अब मैं नहीं बचूंगी और मेरे आँखों से आंसू आने लगे, पर अमर पर कोई असर नहीं हो रहा था। मुझे सच में लगने लगा कि मेरी योनि फट जाएगी, योनि की दीवारों से लिंग ज्यों-ज्यों रगड़ता मुझे ऐसा लगता जैसे छिल जाएगी और बच्चेदानी को तो ऐसा लग रहा था.. वो फट ही चुकी है। मैं अपने पैरों को बिस्तर पर पटकने लगी, कभी घुटनों से मोड़ लेती तो कभी सीधे कर लेती। इतनी बार अमर सम्भोग कर चुका था कि मैं जानती थी कि वो इतनी जल्दी वो नहीं झड़ सकता इसलिए मैं कोशिश कर रही थी कि वो मुझे छोड़ दे। अमर भी धक्के लगाते हुए थक चुका था.. वो हाँफ रहा था, उसके माथे और सीने से पसीना टपक रहा था.. पर वो धक्के लगाने से पीछे नहीं हट रहा था क्योंकि वो भी जानता था कि मैं सहयोग नहीं करुँगी। करीब 20 मिनट के बाद मुझे महसूस हुआ कि अब वो झड़ने को है.. मैंने खुद को तैयार कर लिया। क्योंकि मर्द झड़ने के समय जो धक्के लगाते हैं वो पूरी ताकत से लगाते हैं। अमर पूरी तरह से मेरे ऊपर लेट गया और मेरे हाथों को छोड़ दिया मैंने अमर की कमर को पकड़ लिया ताकि उसके झटकों को रोक सकूं। फिर उसने दोनों हाथ को नीचे ले जाकर मेरे चूतड़ों को कस कर पकड़ा और अपनी और खींचते हुए जोरों से धक्के देने लगा। मैं उसके धक्कों पर कराहती रही और मेरे आँसू निकल आए। उसके झड़ने से मुझे बहुत राहत मिली, पर मेरी हालत ऐसी हो गई थी कि मैं वैसे ही मुर्दों की तरह पड़ी रही। जब आँख खुली तो खुद को उसी अवस्था में पाया जैसे अमर ने मुझे छोड़ा था, मेरा एक हाथ मेरे पेट पर था दूसरा हाथ सर के बगल में, एक टांग सीधी और दूसरी वैसे ही मुड़ी थी जैसे मैंने उसके झटकों को रोकने के लिए रखा था। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे मेरे बदन में जान ही नहीं बची.. मैं दर्द से कराहती हुई उठी तो अपनी योनि को हाथ लगा कर देखा, उसमें से वीर्य में सना खून मुझे दिखाई दिया। मैं डर गई और एक तरफ हो कर देखा तो बिस्तर पर भी खून का दाग लगा था, वैसे तो पूरा बिस्तर गन्दा हो गया था, जहाँ-तहाँ वीर्य.. मेरी योनि का पानी और पसीने के दाग दिखाई दे रहे थे। मैं झट से उसे धोने के लिए डाल देना चाहती थी, पर जैसे ही बिस्तर से उठी तो लड़खड़ाते हुए जमीन पर गिर गई। मेरी टांगों में इतनी ताकत नहीं बची थी कि मैं खड़ी हो सकूं। मैंने अमर को फोन कर सब कुछ बताया तो वो छुट्टी ले कर आया और मुझे मदद की खुद को साफ़ करने में.. फिर मैंने चादर को धोने के लिए डाल दिया। उस दिन मैं दिन भर सोई रही.. शाम को मेरा बेटा घर आया तब तक मेरी स्थिति कुछ सामान्य हुई। फिर शाम को मैं अमर से फोन पर बात की। उसने कहा- नहीं.. ऐसा नहीं है.. मुझे नहीं पता था कि खून निकल रहा है, मुझे भी दर्द हो रहा है और मैं चड्डी तक नहीं पहन पा रहा हूँ। अगले कुछ दिनों तक मेरी योनि में दर्द रहा, साथ ही योनि के ऊपर और नाभि के नीचे का हिस्सा भी सूजा हुआ रहा, योनि 2 दिन तक खुली हुई दिखाई देती रही। मैं अगले 2 हफ्ते तक सम्भोग के नाम से ही डरती रही।
मैंने कहा- मजा तो बहुत आया.. पर मेरे जिस्म की हालत ऐसी है कि मैं ठीक से खड़ी भी नहीं हो सकती।
फिर उसने मेरी एक टांग जाँघों से पकड़ कर अपने ऊपर चढ़ा दिया और अपने लिंग को मेरी योनि में रगड़ने की कोशिश करने लगा।
तभी उसने लिंग को छेद में दबाया और सुपाड़ा मेरी योनि में चला गया।
मैं समझ चुकी थी कि अमर अब नहीं रुकेगा पर फिर भी मैं बार-बार उससे कह रही थी- मुझे छोड़ दो.. मैं मर जाऊँगी।
उसके दिमाग में सिर्फ चरम-सुख था।
क्योंकि अब तक जो दर्द मैं सह रही थी वो कुछ भी नहीं था.. दर्द तो अब होने वाला था।
तो मैंने एक टांग को मोड़ कर अमर की जाँघों के बीच घुसा दिया ताकि उसके झटके मुझे थोड़े कम लगें।
करीब 8-10 धक्कों में वो शांत हो गया।
वो मेरे ऊपर कुछ देर यूँ ही पड़ा रहा फिर मेरे बगल में लेट सुस्ताने लगा।
मेरे हाथ-पाँव जहाँ के तहाँ ही थे और मैं दोबारा सो गई।
मैंने उसे साफ़-साफ़ कड़े शब्दों में कह दिया- तुमने मेरी क्या हालत कर दी.. मेरी योनि फाड़ दी.. अब हम कभी दुबारा सम्भोग नहीं करेंगे।
मैं उससे शाम को सिर्फ झगड़ती ही रही।
अपने प्यारे ईमेल मुझे लिखें।
