दिल का दर्द: एक यादगार रात की कहानी

एक यौनकर्मी और उसके मिलन की कहानी, जो दर्द और स_attachment को दिखाती है। यह एक यादगार रात की कहानी है जो आपको प्यार और दर्द के बारे में सोचने पर मजबूर करेगी।

प्रेषिका – पिंकी सेक्सी

नमस्ते, मेरा नाम है सुहास। मैं बीस साल की हूँ। दो साल पहले मेरी शादी प्रदीप से हुई।

परिवार में मैं, मेरे पति प्रदीप, मेरे ससुर जी रसिकलाल और मेरा छोटा सा बेटा किरण हैं। ससुर का बहुत बड़ा बिज़नेस है और हमें किस चीज़ की कोई कमी नहीं है।

मेरे पिताजी का परिवार बहुत ग़रीब था। चार बहनों में से मैं सबसे बड़ी संतान थी। मेरी माँ लम्बी बीमारी के बाद मर गई। तब मैं सोलह साल की थी। माँ के इलाज के लिए पिताजी ने क्या कुछ नहीं किया। ढेर सारा कर्ज़ा हो गया। पिताजी रेवेन्यू ऑफिस में क्लर्क की नौकरी करते थे। इनकी आमदनी से मुश्किल से गुज़ारा होता था। मैं छोटे-मोटे काम कर लेती थी। आमदनी का और कोई साधन नहीं था कि हम कर्ज़ा चुका सकें। लेनदार लोग तकाज़े करते रहते थे। फिक्र से पिताजी की सेहत भी बिगड़ने लगी थी। ऐसे में मेरे सम्भावित ससुर रसिकलाल ने मदद दी। उनका इकलौता बेटा प्रदीप कुँवारा था। दिमाग़ से थोड़ा सा पिछड़ा होने के कारण उसे कोई कन्या नहीं देता था। रसिकलाल की पत्नी भी छः माह पहले ही मर चुकी थी। घर सँभालने वाली कोई नहीं थी। उन्होंने जब कर्ज़ के बदले में मेरा हाथ माँगा तो पिताजी ने तुरन्त ना बोल दी। मैं हाईस्कूल तक पढ़ी हुई थी। आगे कॉलेज में पढ़ने वाली थी। मेरे जैसी लड़की कैसे प्रदीप जैसे लड़के के साथ ज़िन्दगी गुज़ार सकेगी?

इस पर मैंने पिताजी से कहा,”आप मेरी फिक्र मत कीजिए। मेरी तीनों बहनों की सोचिए। आप रिश्ता मंज़ूर कर लीजिए, और सिर पर से कर्ज़ का बोझ दूर कीजिए। मैं सँभाल लूँगी।”

अपने हृदय पर पत्थर रख कर पिताजी ने मुझे प्रदीप से ब्याह दिया। तब मैं १८ साल की थी। मैं ससुराल में आई। पहले ही दिन ससुरजी ने मुझे पास बिठा कर कहा: “देख बेटी, मैं जानता हूँ कि प्रदीप से शादी करके तूने बड़ा बलिदान दिया है। मैंने तेरे पिताजी का कर्ज़ा पूरा करवा दिया है। लेकिन तूने जो किया है उसकी क़ीमत पैसों में नहीं गिनी जा सकती। तूने तेरे पिताजी पर और साथ ही मुझपर भी बड़ा उपकार किया है।”

मैंने कहा,”पिताजी…”

उन्होंने मुझे बोलने नहीं दिया। कहने लगे: “पहले मेरी सुन ले। बाद में कहना… जो तेरा जी चाहे… ठीक है? तू मेरी बेटी बराबर है। ख़ैर, मुझे साफ़-साफ़ बताना पड़ेगा।”

उन्होंने नज़रें फिरा लीं और कहा,”मैंने प्रदीप का वो देखा है, मुझे विश्वास है कि वो तेरे साथ शारीरिक सम्बन्ध बना सकेगा और बच्चा पैदा कर सकेगा। मेरी यह विनती है कि तू ज़रा सब्र से काम लेना, जैसी ज़रूरत पड़े वैसी उसे मदद करना।”

यह सब सुनकर मुझे शरम आती थी। मेरा चेहरा लाल हो गया था और मैं उनसे नज़रें नहीं मिला पा रही थी। मैंने कुछ न कहा।

वो आगे बोले,”तुम्हारी सुहागरात परसों है, आज नहीं। मैं तुम्हें एक क़िताब देता हूँ, पढ़ लेना। सुहागरात पर काम आएगी। और मुझसे शरमाना मत, मैं तेरा पिता जैसा ही हूँ।”

मुझसे नज़रें चुराते हुए उन्होंने मुझे किताब दी और चले गए। किताब कामशास्त्र की थी। मैंने ऐसी किताब के बारे में सुना था लेकिन कभी देखी नहीं थी। किताब में चुदाई में लगे जोड़ों के चित्र थे। मैं ख़ूब जानती थी कि चुदाई क्या होती है, लंड क्या होता है, छुटना क्या है इत्यादि। फिर भी चित्रों को देखकर मुझे शरम आ गई। इन में से कई तस्वीरें तो ऐसी थी जिनके बारे में मैंने तो कभी सोचा तक ना था। एक चित्र में औरत ने लंड मुँह में लिया हुआ था। छिः छिः, इतना गंदा? दूसरे में उसी औरत की चूत आदमी चाट रहा था। एक में आदमी का पूरा लंड औरत की गाँड में घुसा हुआ दिखाया था। कई चित्रों में एक औरत दो-दो आदमी से चुदवाती दिखाई थी। ये देखने में मैं इतनी तल्लीन हो गई कि कब प्रदीप कमरे में आए, वो मुझे पता ना चला। आते ही उसने मुझे पीछे से मेरे आँखों पर हाथ रख दिया और बोले,”कौन हूँ मैं?”

मैंने उनकी कलाईयाँ पकड़ लीं और बोली,”छोड़िए, कोई देख लेगा।”

मुझे छोड़कर वह सामने आए और बोले: क्या पढ़ती हो? कहानियों की किताब है?”

अब मेरे लिए समस्या हो गई कि उन्हें वह किताब मैं कैसे दिखाऊँ। किताब छुपा कर मैंने कहा,”हाँ, कहानियों की किताब है। रात में आपको सुनाऊँगी।”

खुश होकर वो चला गया। कितना भोला था! उसकी जगह कोई दूसरा होता तो मुझे छेड़े बिना नहीं जाता। दो दिन बाद मैंने देखा कि लोग प्रदीप की हँसी उड़ा रहे थे। कोई-कोई भाभी कहती: देवरजी, देवरानी ले आए हो, तो उनसे क्या करोगे?

उनके दोस्त कहते थे: भाभी गरम हो जाए और तेरी समझ में न आए तो मुझे बुला लेना।

एक ने तो सीधा पूछा: प्रदीप, चूत कहाँ होती है, वो पता है?

मुझे उन लोगों की मज़ाक पसन्द ना आई। अब मैं ससुरजी के दिल का दर्द समझ सकी। मुझे उन दोनों पर तरस भी आया। मैंने निर्णय किया कि मैं बाज़ी अपने हाथ में लूँगी, और सबकी ज़ुबान बन्द कर दूँगी, चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े।

तीसरी रात सुहागरात थी। मेरी उम्र के दो रिश्ते की ननदों ने मुझे सजाया-सँवारा और शयनकक्ष में छोड़ दिया। दूसरी एक चाची प्रदीप को ले आई और दरवाज़ा बन्द करके चली गईं। मैं घूँघट में पलंग पर बैठी थी। घूँघट हटाने के बदले प्रदीप नीचे झुक कर झाँकने लगा। वो बोला: देख लिया, मैंने देख लिया। तुमको मैंने देख लिया। चलो अब मेरी बारी, मैं छुप जाता हूँ, तुम मुझे ढूँढ़ निकालो। वह छोटे बच्चे की तरह छुपा-छुपी का खेल खेलना चाहता था। मुझे लगा कि मुझे ही शुरुआत करनी पड़ेगी।

घूँघट हटा कर मैंने पूछा: पहले ये बताओ कि मैं तुम्हें पसन्द हूँ या नहीं?

प्रदीप शरमा कर बोला: बहुत पसन्द हो। मुझे कहानियाँ सुनाओगी ना?

मैं: ज़रूर सुनाऊँगी। लकिन थोड़ी देर तुम मुझसे बातें करो।

प्रदीप: कौन सी कहानी सुनाओगी? वो किताब वाली जो तुम पढ़ रहीं थीं वो?

मैं: हाँ, अब ये बताओ कि मैं तुम्हारी कौन हूँ?

प्रदीप: वाह, इतना नहीं जानती हो? तुम मेरी पत्नी हो, और मैं तेरा पति।

मैं: पति-पत्नी आपस में मिलकर क्या करते हैं?

प्रदीप: मैं जानता हूँ, लेकिन बताऊँगा नहीं।

मैं: क्यों?

प्रदीप: वो जो सुलेमान है ना! कहता है कि पति-पत्नी गंदा करते हैं!

मैंने यह नहीं पूछा कि सुलेमान कौन है, मैंने सीधा पूछा: गंदा मायने क्या? नाम तो कहो, मैं भी जानूँ तो।

प्रदीप: चोदते हैं।

लम्बा मुँह करके मैं बोली: अच्छा?

बिन बोले उसने सिर हिला कर हाँ कही।

गम्भीर मुँह से मैंने फिर पूछा: लेकिन यह चोदना क्या होता है?

प्रदीप: सुलेमान ने कभी मुझे यह नहीं बताया।

शरमाने का दिखावा करके मैंने कहा: मैं जानती हूँ, कहूँ?

प्रदीप: हाँ, हाँ, कहो तो।

उस रात प्रदीप ने बताया कि कभी-कभी उसका लंड खड़ा होता था। कभी-कभी स्वप्न-दोष भी होता था। रसिकलाल सच कहते थे। उन्होंने प्रदीप का खड़ा लंड देखा होगा।

मैंने बात आगे बढ़ाई: ये कहो, मुझमें सबसे अच्छा क्या लगता है तुम्हें? मेरा चेहरा? मेरे हाथ? मेरे पाँव? मेरे ये…? मैंने उसका हाथ पकड़ कर स्तन पर रख दिया।

प्रदीप: कहूँ? तेरे गाल।

मैं: मुझे पप्पी दोगे?

प्रदीप: क्यों नहीं?

उसने गाल पर चूमा, और मैंने फिर उसके गाल पर। उसके लिए यह खेल था। जैसे ही मैंने अपने होंठ उसके होंठो से लगाया, तो उसने झटके से छुड़ा लिया और बोला: छिः छिः ऐसा गन्दा क्यूँ करती हो?

मैं: गंदा सही? तुम्हें मीठा नहीं लगता?

प्रदीप: फिर से करो तो।

मैंने मुँह से मुँह लगा कर चूमना शुरु कर दिया।

प्रदीप: अच्छा लगता है, करो ना ऐसी पप्पी।

मैंने चूमने दिया। मैंने मुँह खोल कर उसके होंठ चाटे, और वही सिलसिला दोहराया।

मैंने पूछा: प्यारे, पप्पी करते-करते तुमको कुछ होता है?

प्रदीप शरमा कर कुछ बोला नहीं।

मैंने कहा: नीचे पेशाब की जगह में कुछ होता है ना?

प्रदीप: तुमको कैसे मालूम?

मैं: मैं स्कूल में पढ़ी हूँ, इसलिए। कहो, उधर गुदगुदी होती है ना?

प्रदीप: किसी से कहना मत।

मैं: नहीं कहूँगी। मैं तुम्हारी पत्नी जो हूँ।

प्रदीप: मेरी नुन्नी में गुदगुदी होती है और कड़ा हो जाता है।

मैं: मैं देख सकती हूँ?

प्रदीप: नहीं। अच्छे घर की लड़कियाँ लड़कों की नुन्नी नहीं देखा करतीं।

मैं: मैंने तो स्कूल में ऐसा पढ़ा है कि पति-पत्नी के बीच कोई भी राज़ नहीं रहता है। पत्नी पति की नुन्नी देख सकती है और उनसे खेल भी सकती है। पति भी पत्नी की वो… वो… भोस देख सकता है, तुमने मेरी देखनी है?

प्रदीप: पिताजी जानेंगे तो बड़ी पिटाई होगी।

मैं: शह्ह्हह… कौन कहेगा उनसे? हमारी ये बात गुप्त रहेगी, कोई नहीं जान पाएगा।

प्रदीप: हाँ, हाँ कोई नहीं जान पाएगा।

मैं: खोलो तो तुम्हारा पाजामा।

पाजामा खोलने में मुझे मदद करनी पड़ी। निकर उतारी। तब फनफनाता हुआ उसका सात इंच का लम्बा लंड निकल पड़ा। मैं खुश हो गई, मैंने मुट्ठी में पकड़ लिया और कहा: जानते हो? ये तुम्हारी नुन्नी नहीं है। यह तो लंड है।

प्रदीप: तुम बहुत गन्दा बोलती हो।

मैंने लण्ड पर मुठ मारी और पूछा: कैसा लगता है?

लंड ने एक-दो ठुमके लगाए।

वो बोला: बहुत गुदगुदी होती है।

मैं: मेरी भोस देखनी नहीं है?

प्रदीप: हाँ, हाँ।

यह वक्त मेरे शरमाने का नहीं था। मैं पलंग पर चित्त लेट गई, घाघरी उठाई और पैन्टी उतार दी। वह मेरी नंगी भोस देखता ही रह गया। बोला: मैं इसे छू सकता हूँ?

मैं: क्यों नहीं? मैंने जो तुम्हारा लंड पकड़ रक्खा है।

डरते-डरते उसने भोस के बड़े होंठ छुए। मेरे कहने पर चौड़े किए। भीतरी हिस्सा काम-रस से गीला था। आश्चर्य से वो देखता ही रहा।

मैं: देखा? वो जो चूत है ना, वो इतनी गहरी होती है कि सारा लंड अन्दर समा जाए।

प्रदीप: हो सकता है, लेकिन चूत में लंड डालने की क्या ज़रूरत?

मैं: प्यारे, इसे ही चुदाई कहते हैं।

प्रदीप: ना, ना, तुम झूठ बोलती हो।

मैं: मैं क्यूँ झूठ बोलूँ? तुम तो मेरे प्यारे पति हो। मैंने अभी अपनी भोस दिखाई कि नहीं?

प्रदीप: मैं नहीं मानता।

मैं: क्या नहीं मानते?

प्रदीप: वो जो तुम कहती हो ना कि लंड चूत में डाला जाता है।

मुझे वो किताब याद आ गई। मैंने कहा: ठहरो, मैं दिखाती हूँ। किताब के पहले पन्ने पर रसिकलाल लिखा हुआ था. वो दिखा कर मैंने कहा: ये किताब पिताजी की है। तस्वीरें देख वह हैरान रह गया। मैंने कहा: देख लिया ना? अब तसल्ली हुई कि चुदाई में क्या होता है?

उसपर कोई असर न पड़ा। वो बोला: मुझे पेशाब लगी है।

मैं: जाईए पेशाब करने के बाद लंड पानी से धो लीजिए।

वह पेशाब कर आया। उसका लंड नर्म हो गया था। मैंने लाख सहलाया, फिर से हिला नहीं। मुँह में लेकर चूसना चाहा, पर प्रदीप ने ऐसा करने ना दिया। रात काफ़ी बीत चुकी थी। मैं उत्तेजित भी हो गई थी, लेकिन प्रदीप अनाड़ी था। लंड खड़ा होने के बावज़ूद उसके दिमाग़ में चोदने की इच्छा पैदा नहीं हुई थी। वो बोला: भाभी, मुझे नींद आ रही है।

उस रात से वो मुझे भाभी कहने लगा। मैंने उसे गोद में लेकर सुलाया, तो तुरन्त नींद में खो गया। मैंने सोचा आगे-आगे चुदाई के पाठ पढ़ाऊँगी और एक दिन उसका लंड मेरी चूत में लेकर चुदवाऊँगी ज़रूर। लेकिन मेरे नसीब़ में कुछ और लिखा था।

उनके कुछ शरारती दोस्तों ने उनके दिल में ठसा दिया कि चूत में दाँत होते हैं, नूनी जो चूत में डाली तो चूत उसे काट लेगी। फिर पेशाब कहाँ से करेगा। मैंने लाख समझाया, लेकिन वो नहीं माना। मैंने कहा कि ऊँगलियाँ डाल कर देख लो कि अन्दर दाँत हैं या नहीं। उसने वह भी नहीं किया। बिन चुदवाए मैं कँवारी ही रही। रसिकलाल की पहचान वाले और प्रदीप के कई मुँह-बोले दोस्तों में से कितनी ही ऐसे थे जिन्होंने मुझ पर बुरी नज़र डाली। दूर के एक देवर ने खुला पूछ लिया: भाभी, प्रदीप चोद ना सके, तो घबराना नहीं, मैं जो हूँ। चाहे तब बुला लेना। उन सबको मैंने कह दिया कि प्रदीप मेरे पति हैं और मुझे अच्छी तरह चोदते हैं। दिनभर मैं उन सब का हिम्मत से सामना करती थी। रात अनाड़ी बलम से बिन चुदवाए फूट-फूट कर रो लेती थी। रसिकलाल लेकिन होशियार थे, उन्हें यकीन हो गया था कि प्रदीप ने मुझे चोदा नहीं था। मुझे शक है कि चुपके से वो हमारे बेडरूम में देखा करते थे। जो कुछ भी हो, उन्हें पितामह बनने का उतावलापन था।

एक दिन एकांत पाकर मुझसे पूछा: क्यूँ बेटी? सब ठीक हैना? उनका इशारा चुदाई की ओर था जानकर मुझे शर्म आ गई। मैंने सिर झुका लिया और कुछ ना कह सकी… मैं रो पड़ी। मेरे कंधों पर हाथ रखकर वो बोले: मैं सब जानता हूँ, तू अभी भी कँवारी है। प्रदीप ने तुझे चोदा नहीं है सच है ना? ससुरजी के मुँह से चोदा शब्द सुनकर मैं चौंक गई, उनकी बाँहों से निकल गई, कुछ बोली नहीं। आँसू पोंछ कर सिर हिला कर हाँ कहा। वो फिर मेरे नज़दीक आए, मेरे कंधों पर अपनी बाँह रख दी और बोले: बेटी, ये राज़ हम हमारे बीच रखेंगे कि प्रदीप चोदने के क़ाबिल नहीं है। लेकिन मुझे पोता चाहिए, इसका क्या? मेरी इतनी बड़ी जायदाद, इतना बड़ा कारोबार सब सफ़ा हो जाएँगे, मेरे मरने के बाद। वो तो वो लेकिन जब मैं इस दुनिया में ना रहूँ तब तेरी और प्रदीप की देख-भाल कौन करेगा जब तुम दोनों बुड्ढे हो जाओगे? मुझे लड़का चाहिए। है कोई ईलाज तेरे पास?

मैंने कहा: मैं क्या कर सकती हूँ पिताजी?

रसिकलाल: तुझे करना कहाँ है? करवाना है समझीं?

मैं: हाँ, लेकिन किस के पास जाऊँ? आप की इच्छा है कि मैं कोई और मर्द छिः छि:। मुझसे यह नहीं हो सकेगा।

रसिकलाल: मैं कहाँ कहता हूँ कि तू ग़ैर मर्द से चुदवा।

ससुरजी फिर चुदवाओ शब्द बोले। मुझे शरम आ गई। सच कहूँ तो मुझे बुरा नहीं लगा, थोड़ी सी गुदगुदी हो गई और होंठों पर मुस्कान आ गई जो मैंने मुँह पर हाथ रख कर छुपा ली।

मैंने पूछा: आपकी क्या राय है?

कुछ मिनटों तक वे चुप रहे, सोच में पड़े रहे, अन्त में बोले: कुछ ना कुछ रास्ता मिल जाएगा, मैं सोच लूँगा। मुझे तू वचन दे कि तू पूरी सहायता करेगी। करेगी ना?

मैंने वचन दे दिया। वो चले गए। उस दिन के बाद ससुरजी का रंग ही बदल गया। अब वो अच्छे कपड़े पहनने लगे। रोज़ शेविंग करके स्प्रे लगाने लगे। बाल जो थोड़े से सफेद हुए थे, वो रंग लगवा कर काले करवा लिए। एक बार उन्होंने पानी का प्याला माँगा। मैंने प्याला दिया तब लेते वक्त उन्होंने मेरी ऊँगलियाँ छू लीं। दूसरी बार प्याला पकड़ने से पहले मेरी कलाई पकड़ ली। बात-बात में


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