कई दिनों तक इंतजार करने के बाद काजल फिर से मेरे घर पर आने लगी. काजल की कुछ दिनों की गैरमौजूदगी के अकाल में मेरे प्यार के नए-नए पौधे की पत्तियां सूखने लगी थी. मगर उसके दोबारा आ जाने से उसकी मौजूदगी की बूंदों पड़ने से अब उस आकर्षण के पौधे ने एक बार फिर से नई कोपलें निकाल दी थीं.अब मैं मौका नहीं चूकना चाहता था. मैं जानता था कि काजल भी मेरी तरफ आकर्षित है लेकिन उससे अकेले में बात करने का कभी मौका मिलता ही नहीं था क्योंकि सुमिना हमेशा पास में होती थी. सुमिना के सामने हाय-हैल्लो से ज्यादा कुछ बात होना संभव भी नहीं था फिर भी मैंने उम्मीद बांधी हुई थी कि कभी तो उसके करीब जाने का मौका मिलेगा ही.एक दिन सुमिना और काजल दोनों शॉपिंग का प्लान बना बैठीं. जाने को तो वो दोनों पापा के साथ भी जा सकती थीं लेकिन पापा के साथ उनके न जाने का कारण यह था कि सुमिना और काजल दोनों जवान लड़कियां थीं इसलिए अपने से बड़ी उम्र के व्यक्ति के साथ वो न तो खुल कर बातें कर पातीं और न ही मटरगश्ती ही हो सकती थी.इसलिए मेरे हिसाब से सुमिना ने इसके लिए मुझे ही टोका क्योंकि पापा के साथ कहीं बाहर जाना उनको भी शायद रास नहीं आ रहा होगा. जब मैं कॉलेज से आया तो सुमिना ने मुझसे कहा- सुधीर, आज तुम हमें मार्केट में ले चलोगे क्या?पहले तो मुझे मेरे कानों पर यकीन नहीं हुआ, मैं वहीं बुत बन कर खड़ा हो गया जैसे मुझे कोई सांप सूंघ कर चला गया हो. फिर जब सुमिना ने अपने ही मन में कुछ सोचकर ये कहा- कोई बात नहीं, हम दोनों फिर कभी चली जायेंगी, तुम आराम करो. तब मेरा स्वप्न टूटा और मैंने हाथ से छूटते हुए मौके के चौके को ऐसे कैच किया कि यह कैच मेरे प्यार की पिच पर काजल को क्लीन बोल्ड करने का एकमात्र अवसर है।मैंने तुरंत हां कर दी. सुमिना मना करती रही लेकिन अब उन दोनों को शॉपिंग पर ले जाना मेरे लिए इतना जरूरी हो गया था जैसे प्यास से मरते हुए इन्सान को पानी का एक घूंट नसीब हो जाये.काजल के करीब जाने का एक यही मौका था मेरे पास जिसे मैं किसी भी हाल अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था. मैंने बहाने पर बहाने बनाये और आखिरकार सुमिना को उसी दिन शॉपिंग पर चलने के लिए मजबूर कर दिया.हाथ-मुंह धोकर मैंने जल्दबाजी में खाना ठूंसा और निवाले निगल-निगल कर फटाफटा पेट भर लिया. अगले दस मिनट के भीतर मैं उनकी सेवा में हाजिर था. …और फिर सब बदल गया