सहेलियों की रात्रिभोज़: दोस्ती और चुंबकत्व की कहानी

एक रात्रिभोज़ के दौरान, सहेलियाँ अपनी दोस्ती को नए सिरे से परिभाषित करती हैं। क्या यह सहेलियों की रात्रिभोज़ का अंतिम क्षण है, या शुरुआत?

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Chudasi Saheliyan
दोस्तो, मेरा नाम आनन्द है। आज मैं आपको मेरी एक सच्ची घटना के बारे में बताने वाला हूँ।

बात उन दिनों की है, जब मैं बारहवीं कक्षा में था। मेरी उम्र करीब बीस साल की थी और मेरा लंड सात इंच का था।

गाँव में स्कूल ना होने की वजह से मैं शहर पढ़ने जाता था। जहाँ एक ग्यारहवीं कक्षा की लड़की भी आती थी जिसका नाम निशा था।
हमारी क्लास के सारे लड़के उस पर मरते थे। जिनमें एक मैं भी था।

निशा काफी लम्बी लड़की थी, उसके मम्मे तने हुए और चूतड़ एकदम मस्त लचकीले थे, जब वह चलती तो उसके चूतड़ देखकर मेरा लण्ड अपने आपे से बाहर होने लगता।

क्लास में एक लड़की और थी जिसका नाम रमा था, उसका दिल मुझ पर आया था पर मैं उस पर ध्यान नहीं देता था क्योंकि जब मस्त चूत पर दिल आ जाए तो कोई काली चूत क्यों देखे भला?

रमा मुझको एक बार प्रपोज कर चुकी थी पर उसे मैंने मना कर दिया था।

एक बार शिक्षक दिवस पर रमा ने मुझसे फिर अपने प्यार का इजहार किया, मैंने उसे तब भी मना कर दिया।

रात को जब मैं सोया तो मेरे दिमाग में एक बात आई क्यों ना रमा के जरिए निशा तक पहुँचा जाए और मैंने ऐसा ही किया।

दूसरे दिन स्कूल जाकर रमा से कहा- अगर मैं तुमसे प्यार करूँ तो तुम मेरा एक काम करोगी?

तो वो बोली- तुम जो बोलोगे.. मैं करुँगी।

तो मैंने कहा- ठीक है.. तुम मुझे निशा पटवा दो.. बदले में तुम जो चाहोगी मैं करुँगा।

वो तैयार हो गई.. शायद उसको भी मुझसे प्यार नहीं था, बस वो अपनी चूत की खुजली मिटवाना चाहती थी।

मैंने उसे खुश करने के लिए उसको वहीं चुम्मी ली और उसके मम्मे दबाना शुरू कर दिए।

वो बोली- अभी हम स्कूल में हैं.. आगे का काम फिर कभी करेंगे।

मैंने कहा- ठीक है, पर तुम्हें मेरा काम आज ही करना पड़ेगा।

मैंने उसको निशा के लिए एक लव-लेटर दिया और चला आया।

मैं सोच रहा था कि कहीं निशा मना ना कर दे।

दूसरे दिन हम फिर मिले, मैंने पूछा- क्या हुआ?

तो रमा बोली- आनन्द, तेरे लिए तो मैं पूरी दुनिया को पटवा सकती हूँ, तो निशा क्या चीज है।

यह सुनते ही मेरा लंड खड़ा हो गया और मैंने रमा को जोर से पकड़ कर उसके दोनों मम्मों को दबाना शुरू कर दिया और उसकी चूत पर भी हाथ फेरता रहा।

इतने में घंटी बज गई।

वो बोली- शाम को मेरे घर आ जाना.. घर में कोई नहीं है।

फिर हम चले गए, शाम को मैं रमा के घर पहुँच गया।

मैंने देखा तो वहाँ निशा खड़ी थी, मैं उसके पास गया, मैंने पूछा- निशा क्या तुमको मेरा लेटर मिला?

तो वो मुझे कहने लगी- पागल.. पहले कहना चाहिए था ना.. अब तक तुमने कहा ही नहीं था।

यह सुनते ही मैंने उसको जोर से पागलों की तरह चूमना शुरू कर दिया।

इतने में रमा भी वहीं आ गई और बोली- कमरे में चलो।

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या चक्कर है।

रमा ने अन्दर जाकर कुंडी लगा दी और बोली- आनन्द, जो तुम्हारे पास है, वो हमें चाहिए और जो हमारे पास है वो तुमको चाहिए।

मैंने सोचा निशा के सामने मेरी पोल खुल गई, लेकिन निशा भी हँस रही थी।
मैं समझ गया कि दोनों ने आपस में बात कर ली है।

तो मैंने कहा- अच्छा तो अब मैं चलता हूँ।

तो निशा बोली- मुझे यहाँ बुला कर तुम कहाँ जा रहे हो?

अब मैं भी पीछे नहीं हटा और बोला- ठीक है.. तो आ जाओ बिस्तर पर..

वो आकर मुझसे लिपट गई और एक बार फिर चुम्बनों का सिलसिला चालू हो गया।

इतने में हमें देखकर रमा भी गरम हो गई, तो मैंने उसे भी बुला लिया।
आखिर उसी की वजह से तो ये सब हो रहा था।

फिर वह भी मुझे सहलाने लगी। जो चूत के लिए परेशान था आज दो-दो चूत उस पर मर रही थीं।

पहले मैंने निशा से कहा- अपनी जीन्स उतारो।

मैं भी अपने कपड़े उतारने लगा। रमा भी अपने कपड़े उतार रही थी, फिर दोनों को पलंग पर लेटा दिया।

दोनों चुदासी लौंडियाँ केवल कच्छी में थीं।

मैंने दोनों हाथों से उनकी चूतों को सहलाना शुरू कर दिया और फिर दोनों के स्तनों को मसकने लगा।

रमा के बुब्बू निशा के मुकाबले काफी बड़े थे।

फिर मैंने दोनों की पैन्टियाँ निकाल दीं, निशा की चूत तो मानो, चाँद का टुकड़ा थी और रमा की चूत काली थी।

फिर रमा खड़ी होकर बिस्तर से नीचे आई और मेरा लंड अपने मुँह में लेने लगी।
इधर मैं निशा के चूचे चाट रहा था।

फिर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने दोनों की चूत में बारी-बारी अदल बदल करके अपना लंड प्रवेश करवाया।
बार बार चूत में से लण्ड निकालने के कारण मैं काफ़ी देर तक नहीं झड़ा था।
उस दिन दोनों को धकापेल खूब चोदा। इसके बाद जब कभी मौका मिलता, मैं दोनों को चोदता।
आपके विचारों का बेसब्री से इन्तजार रहेगा।

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