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मेरी विज्ञापन एजेंसी का सेक्स क्लब

मेरा नाम भुजंगभूषण भट्टाचार्य है और मैं 59 वर्ष का कामुक पुरुष-लंठ हूँ।

मैं एक विज्ञापन एजेंसी में निदेशक अर्थात डाइरेक्टर के पद पर हूँ। यहाँ मैं नया आया हूँ; पहले मैं दूसरी विज्ञापन कंपनी में उपनिदेशक ( डिप्टी डाइरेक्टर ) था। नई विज्ञापन एजेंसी में तीन पुरुष और आठ स्त्रियाँ मेरे नीचे काम पर थीं। पुरुष 28, 38, और 43 वर्ष की उम्र के थे; लेकिन स्त्रियों और लड़कियों की उम्र पुरुषों से कम-ज्यादा थी। विज्ञापन एजेंसी का काम मुख्यतः स्त्रियों के जिम्मे था, जबकि पुरुष दफ्तर के प्रशासन का काम देखते। इस एजेंसी का काम विज्ञापन बनाना और उनका प्रसारण करना था। ये विज्ञापन एडल्ट या वयस्क तर्ज़ के होते– चाहे वो चॉकलेट या लोलीपॉप का हो, कोंडोम हो, या महिला लिंगरी ( अंतर्वस्त्र )। इनसे वह आय नहीं होती थी जो इस एजेंसी के मालिक लोग अर्थात इसमें धन या पैसा लगाने वाले चाहते थे। एजेंसी की संचालन समिति में सेठ बोपटलाल संपटलाल शाह व उनके सहयोगी गण की अब फरमाइश यह थी कि उक्त विज्ञापनों के बदले पोर्न यानी नंगी फिल्मों के प्रसारण की एजेंसी या साइट खोली जाए। यह एजेंसी या साइट होंगकोंग से संचालित होगी, परंतु इसका सारा काम भारत में होगा।

मेरे लिए यह नया काम चुनौतीपूर्ण बन गया। मेरे पुरुष कर्मचारियों को इस नए काम में कोई आपत्ति नहीं थी लेकिन मुझे अपनी एजेंसी की स्त्रियों की सहमति भी चाहिए थी क्योंकि सारा काम उनको करना था। जिस समय सेठ बोपटलाल संपटलाल शाह का आदेश आया उस वक्त एजेंसी में आठ स्त्रियाँ यह काम सम्हाल रही थी। मुझे उनकी मनोभावनाओं को समझ उनसे काम लेना था। मैंने पाया कि तीन स्त्रियाँ इस नए नंगे काम को नहीं कर पाएगी। उन तीनों का स्थानांतरण मैंने ज्यादा वेतन पर पुरानी विज्ञापन एजेंसी में करा दिया जहां उन्हें स्पोर्ट्स, खेलकूद के विज्ञापनों का जिम्मा दिया गया। अब मुझे तीन नयी लड़कियों की भर्ती करनी थी। मैंने सोचसमझ कर 15, 16, व 17 साल की तीन छोरियों की भरती कर डाली। बाकी पांचों ने मुझे बताया कि इस काम में उन्हें लज्जा नहीं है, क्योंकि यह तो वक्त और बाज़ार दोनों की मांग है, अलबत्ता उन्हें यह काम करने-करवाने के लिए वेतन बढ़ोतरी जरूर चाहिए। उनकी यह मांग मान ली गयी। वैसे प्रशासन का काम कर रहे तीन पुरुष कर्मचारियों का भी वेतन बढ़ाया गया।

पुरुष कर्मचारियों में वयोवृद्ध सज्जन हुकमाराम चौधरी ( 43 वर्ष ) कार्यालय अधीक्षक थे। रमाकांत शुक्ल ( 38 वर्ष ) लेखापाल- खजांची, और जेठामल ( 28 वर्ष ) बाकी का काम देखते। इनके अधीन पाँच कनिष्ठ कर्मचारी भी थे जिनका मैं विशेष जिक्र नहीं कर रहा। एजेंसी में महिला वर्ग की स्थिति इसप्रकार थी:

[ 1 ] रूपाली ( 21 वर्ष ), कुंवारी; [ 2 ] सुलोचना ( 23 वर्ष ), नवविवाहिता; [ 3 ] बन्दना ( 27 वर्ष ), विवाहिता; [ 4 ] भास्वती ( 31 वर्ष ), परित्यक्ता; [ 5 ] कांतारानी ( 33 वर्ष ), कुंवारी – – – -; नई रखी छोरियों का विवरण छोटा सा है: : सुकन्या ( 15 वर्ष ), सलोनी ( 16 वर्ष ), और चारु ( 17 वर्ष ); तीनों मासूम, कोरी-कच्ची व कुंवारियाँ।

नए धंधे के लिए पहली समिति जो मैंने बनाई उसमें हुकमाराम चौधरी, भास्वती, और कांतारानी को रखा। तीनों परिपक्व उम्र के थे और इस नई लाइन को समझते थे। नंगी फिल्मों की किस्में लंबी-चौड़ी थीं और हमें उनमें से छांटना था। भास्वती और कांतारानी को यह ज़िम्मेदारी भी दी कि वे रूपाली, सुलोचना, और बन्दना को नए सिरे से ट्रेनिंग दें ताकि उनकी रही-सही शरम खुल जाय। इस मामले में मैं खास राय हुकमा राम जी से लेता था। तदनुसार हुकमाराम ने भास्वती और कांतारानी को मेरे निजी कक्ष में भेजा। दोनों मस्त पट्ठियाँ थीं। दोनों मेरे अगल-बगल बैठीं। कांतारानी ने मुझे बताया कि रूपाली को ट्रेनिंग दे दी है व उसकी झिझक खत्म है। बंदना और सुलोचना विवाहित हैं और संभोग चतुर; बंदना के 7 साल की बच्ची भी है और सुलोचना तीन महीने से गर्भवती। फिर मैंने भास्वती से पूछा, कि ” तुम्हारा क्या विचार है? ” वह चहक कर बोली, ” सर जी! मेरा तो ये विचार है कि आप इन तीनों को ‘प्राइवेट ‘ में एक-दो नंगी फिल्म दिखा दीजिये और विचार खुद जान लीजिये”।

हमने तय किया कि होंगकोंग साइट पर फिलहाल incest, school girls, ass fucking, gang bang, और BDSM से संबन्धित नंगी फिल्मों की list डाली जाए; incest फिल्मो की लिस्ट बनाने की ज़िम्मेदारी बंदना पर, school girls का जिम्मा रूपाली पर, ass fucking का कर्तव्य सुलोचना पर, gang bang के लिए भास्वती, और BDSM की ज़िम्मेदारी कांतारानी की हो। शुरू में 100 नंगी फिल्मों की लिस्ट हो और हरेक फिल्म के 2 मिनट के फ्री नंगे दृश्य हों; पसंद आने पर दर्शक इन्हें अच्छे पैसे देकर online देखा करें या डीवीडी खरीद लें। इसके बाद मैंने हुकमाराम को कहा कि मामला ‘फिट’ करना है। वह मुस्कराया और बोला, ‘ जी साहब, सब सही होगा’।

कुछ देर बाद बंदना मेरे कक्ष में फुदकी, और बोली, ‘ सर, कुछ तो मैंने समझ लिया है हुकमाराम अंकल से पर बाकी का काम आप खुद समझा दें तो मैं लिस्ट बनाऊँ ‘। मैंने सलाह दी कि incest में फिलहाल मां-बेटा, बाप-बेटी, ससुर-बहू, भाई-बहिन, और मामा-भांजी की चुदाई के खेल डालने हैं; ये सब मिलकर 20 फिल्मों से ज्यादा ना हो। बाद में रूपाली भी आ गई, यह पूछने कि स्कूल गर्ल केटेगरी में कितनी उम्र की लड़की डाली जाए? मैंने कहा, वैसे तो स्कूल में 3 से 19 साल की लड़कियां पढ़ती है पर नंगी फिल्मों का ट्रेंड ये है कि इनमें 14-17 उम्र की छोरियाँ काम करती हैं।

सुलोचना को लड़कियों की गांड मारने वाली फिल्मों को छांटने की ज़िम्मेदारी दी, उस समय तो उसने ना-नुकुर नहीं किया पर बाद में उसे कुछ परेशानी हो गई। हुकुमाराम को मैंने कहा तो वह सुलोचना को समझा -बुझा मेरे पास लाया। पहले तो मैं कड़क रहा, कहा– ये एडल्ट काम समझदारी के साथ तुम नहीं कर सकती तो काम छोड़ दो। इस पर वह नम्रता से बोली: ‘बात ये है सर कि इस लाइन की मैंने एक भी फिल्म नहीं देखी; मेरे लिए यह नया-नया काम है। आप कुछ स्पेशल ट्रेनिंग दें तो काम मैं ये कर लूँगी, सर, बात ये है कि,….। ‘ हुकमाराम ने मुझे आँख से एक गंदा इशारा किया तो मैं सब समझ गया। मैंने सुलोचना की हथेली अपनी हथेली में ली और बोला, ‘ तो, यूं कह ना…! ‘ फिर मैं उसे स्क्रीनिंग स्टूडिओ में ले गया, समझाता रहा। कहा कि ‘आजकल अच्छे और सुसभ्य मर्द लड़कियों की गाँड मारनेवाली फिल्में ही देखते हैं। जो लड़कियां इन फिल्मों में गाँड मरवाती हैं उनको ज्यादा पैसा मिलता है बजाय कि जो मर्द उनकी मारते हैं। यह उम्दा कला है। ‘ उस वक्त मैं सुलोचना के नितंबों के पीछे ही था। फिर मैंने उसे फिल्म का एक दृश्य दिखाया जो दो मिनट का ही था। उसमें एक 17 वर्ष की छरहरी लड़की आती है और बिना शरम के पूरी नंगी होती है, फिर झुक कर गाँड फैलाती है; एक मर्द पहले उसकी गाँड में अंगुली करता है, और फिर अपना लंड लड़की की गाँड के छेद में घुसाता है। यह दिखाते हुए मैं खुद सुलोचना की गाँड से सट गया, और अश्लीलता के साथ दो-तीन धक्के मारे, सुलोचना के पीछे-पीछे मारे।

बाकी लड़कियों को कोई प्रॉबलम नहीं थी तो वे नहीं आईं।

इसके बावजूद मैंने एक सेमीनार किया, कई दूसरी लड़कियों व लड़कों को बुलाया। हमने पॉर्न स्टूडिओज से सीधा संपर्क किया और केवल नई बनी फिल्मों के वीडियोज़ उनसे करार कर डाऊनलोड किए।

यह काम छह महीने चला ही था कि मेरी एजेंसी की लड़कियों की तरफ से ये प्रस्ताव आया कि जब हम दूसरी जगह बनी नंगी फिल्मों को बेचते हैं तो हमें बहुत कम मुनाफा होता है, अगर हम खुद ये नंगी फिल्में बना लें तो सही फायदा होगा। यह प्रस्ताव पांचों लड़कियों की तरफ से आया तो मैंने उनमें से दो — कांता और भास्वती को बुलाया जो उम्र में सबसे बड़ी थी। दोनों ने बताया कि ‘ सर, बात सिर्फ नंगी फिल्में बना पैसा कूटने की ही नहीं है बल्कि जरूरत ये है कि आप हम छोकरियों के लिए सेक्स क्लब बनाएँ जिसमें आप खुद हमें चोदें। ‘ भास्वती बोली— ‘सर, असल बात ये है कि नंगी फ़िल्मों का कारोबार करते-करते हमारी खुद की तबीयत रंगीन हो गईं हैं, और हम आप से चुदना चाहती हैं। इसमें आपको भी, सर, मज़ा आएगा, और हमें भी। खुलेआम जो नंगानंगी चुदाई आप करेंगे उससे फिल्म भी बन जाएगी, और हमारा अपना पॉर्न स्टूडिओ हो जाएगा, जो मज़ा हम लेंगे वो अलग से’। कांता ने भी कहा: ‘ सर, ये वक्त की डिमांड है’।

मैंने इस प्रस्ताव को मंजूर कर लिया। मैंने अपनी एजेंसी की एक-एक छोकरी को प्राइवेट में बुलाकर राय ली और फिर कांतारानी और भास्वती के प्रस्ताव में कुछ रद्दोबदल किया गया। रद्दोबदल ये कि लड़कियों की चुदाई करने के नेक काम में मेरे अलावा हुकमाराम, रमाकांत, और जेठालाल भी शामिल होंगे। मतलब 8 छोकरियाँ और 4 मर्द। लेकिन ठहरिए; इस बीच मुझे एक और लड़की को अपनी प्राइवेट सेक्रेटरी के नाते रखना पड़ गया था। इसका नाम मीनाक्षी था और यह 19 साल की थी। हमने इसे ये नहीं बताया था कि हमारा धंधा कैसा है। बस, किसी ने सिफारश कर दी थी कि गरीब मगर खूबसूरत छोकरी है, आप रख लो, वक्त-जरूरत काम आएगी।

कोई तीन दिन बाद मीनाक्षी मेरे पास आई और बोली: ‘ सर, आपने मुझे पहचाना? ‘ मैंने अपनी स्मरणशक्ति पर बहुत ज़ोर लगाया पर कुछ याद नहीं आया। तब उसने बताया: ‘ सर। मैं आपके पुराने दोस्त मदनमोहन की बेटी हूँ’। अब मैंने उसे गौर से देखा, खास कर उसकी भरी-भरी छातियों की तरफ, और चौंकती आवाज में बोला—- ” अरे, मुन्नी! तू इतनी बड़ी हो गई?? मैंने तुझे आखिरी बार तब देखा जब तुम नौ साल की थी। उसके बाद तुम्हारे पापा से मेरा कोई संपर्क नहीं रहा। कैसे हैं तुम्हारे पापा? ” वह बोली: ‘ दस साल से वे सऊदी अरेबिया में बिज़नस करे थे पर अब दो साल से कंपनी को घाटा जा रहा है’। मैं चुप रहा; फिर वह चली गई पर क्या सोच कर तीन मिनट बाद वापस आई, और बोली: ‘ सर, मुझे एक और बात भी कहनी है’। मैंने उसके बालों पर हाथ फिराया और बोला– ‘ कहो, बेटा! ‘ तो उसने कहा: ‘ सर, आप जो सेक्स क्लब चलाने जा रहे हैं उसमें मैं भी —-? ” मैं चौंका, फिर उसकी भारी-भारी छातियों को और गौर से, गृद्ध दृष्टि से देख बोला — ‘ तू, ये काम कर लेगी ना? उसने ज़ोर से सिर हिला हामी भरी। मैं तब बोला–‘थोड़ा पीछे मुड़, बेटी! इस काम के लिए तेरी लाइन टटोलूँ’। पीछे उसके नितंबों को देखा तो आँखें चमक उठी। आह, क्या मस्तानी गाँड़ थी छोकरी की!! फिर तसल्ली से बोला, ” यस, वेरी गुड! ‘। इस पर वह खुश हो चली गई।

अब ये काम तुरत-फुरत शुरू करना था। फिलहाल 9 छोकरियाँ और 4 पुरुष मैदान में थे, मुझ समेत; मैं दरअसल महापुरुष था। मैंने भास्वती को अलग से बुलाया और कहा ‘ भास्वती बहन, ये जो मीनाक्षी है ना ये मेरे दोस्त की बेटी है। जब ये सात साल की थी तब भी और जब ये नौ साल की हुई तब भी जब भी मैं इसके घर इसके पापा से मिलने जाता इसे गोद में बैठा लाड़ लड़ाता था। सेक्स क्लब में मैं सबसे पहले इसकी चुदाई करना चाहता हूँ। जहां तक तुम्हारा सवाल है कभी तुझे बहन-बहन कह के चोदूँगा, कभी बेटी-बेटी कह कर चोदूँगा। तुझे कोई प्रॉबलम तो नहीं? वह बोली: ‘सर, आप ये क्या कह रहें हैं, भला मुझे आपसे क्या प्रॉबलम?? यह कह भास्वती ने मुझे आँख मारी।

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